भारत में न्यायपालिका में लंबित मामलों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए ‘लोक अदालत’ न्याय सुनिश्चित करने का असरदारी साधन साबित हो सकता है। लोक अदालतों की स्थापना के संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख करते हुए इसके महत्त्व को स्पष्ट करें।
13 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाभारत में न्यायालयों के विभिन्न स्तरों पर लाखों मामले लंबित पड़े है एवं उनकी संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही हैं। न्याय प्राप्ति में खर्च होने वाले समय और धन की मात्रा को देखते हुए न्याय उपलब्ध कराने के वैकल्पिक साधनों की आवश्यकता है। ऐसा ही एक वैकल्पिक साधन है- लोक अदालत।
संविधान के अनुच्छेद 39A में प्रावधान है कि- ‘राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि न्याय तंत्र इस प्रकार से काम करे कि सभी को न्याय का समान अवसर मिले एवं आर्थिक या किसी अन्य कारण से कोई नागरिक न्याय प्राप्ति से वंचित न रह जाए। इसके लिये राज्य निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।
संविधान के इस प्रावधान को आधार बनाकर ‘विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987’ पारित किया गया तथा इसके तहत ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)’ का गठन किया गया। इस प्राधिकरण को लोक अदालतें आयोजित कराने की शक्ति दी गई।
लोक अदालत का महत्त्व
इस प्रकार, भारत जैसे देश में जहाँ जनता में विधिक जागरूकता का अभाव है, गरीबों को न्याय प्राप्ति के मार्ग में कई बाधाएँ है तथा न्यायपालिका लंबित मामलों के बोझ से दबी है; लोक अदालतें सबको न्याय सुनिश्चित करने के संवैधानिक उद्देश्यों को पूरा करने में सफल हो सकती हैं।