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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जहाँ जल है, वहाँ सभ्यता मूर्त प्रतीत होती है, इसके न होने पर हम सभ्यता की कल्पना ही नहीं कर सकते। क्या हाल के कावेरी जल विवाद में राजनैतिक इच्छाशक्ति या संवैधानिक प्रावधानों की अपर्याप्तता एवं अस्पष्टता के चलते भारत के अंतर-राज्य जल विवाद के संदर्भ में यह एक वृहद् विचारणीय प्रश्न बनता हुआ प्रतीत हो रहा है? टिप्पणी करें।

    03 Sep, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • प्रभावी भूमिका में जल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में सभ्यताओं के विकास को उल्लेखित करें ।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में कावेरी नदी जल विवाद के संदर्भ में जल विवाद समाधान के लिये संवैधानिक प्रावधानों तथा सरकारी प्रयासों का उल्लेख करें साथ ही प्रावधानों की अपर्याप्तता और अस्पष्टता को भी बताएँ।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    मानव जीवन के आरंभ से ही सभ्यता का विकास पर्याप्त जल स्रोतों की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में हुआ है, जैसे- सिंधु घाटी सभ्यता का विकास। चूँकि जल मानव सहित समस्त जैविक संसार के लिये आधारभूत आवश्यकता है इसलिये किसी सभ्यता का विकास होना या न होना, जल पर निर्भर करता है।

    कावेरी नदी, जो कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु में बहती है, के किनारे विशाल जनसंख्या का वास है। जिसकी अधिकांश गतिविधियाँ कावेरी नदी में जल की उपलब्धता से सुनिश्चित होती हैं। चूँकि कावेरी नदी में जल की उपलब्धता मानसून पर निर्भर करती है इसलिये जल की कमी की दशा में इन राज्यों के मध्य विवाद उभर कर आता है।

    चूँकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ सरकार की शक्ति का आधार जनता है, इसलिये अंतर्राज्यीय विवाद उभरना सामान्य बात है। इन विवादों के समाधान के लिये संविधान में अनुच्छेद 262 का प्रावधान किया गया है, जो सरकार को जल विवादों के समाधान के लिये नियम बनाने व विशेष न्यायाधिकरण की स्थापना का अधिकार देता है।

    इसी आधार पर अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 पारित किया गया और 1990 में कावेरी जल विवाद प्राधिकरण की स्थापना की गई। फिर भी हाल ही में आए सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और उसके बाद हुई हिंसक घटनाएँ जल के महत्त्व को रेखांकित करती हैं। साथ ही संवैधानिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति की अपर्याप्तता और अस्पष्टता दृष्टिगोचर होती है।

    हिंसात्मक गतिविधियों से एक तरफ संविधान के प्रावधान अपर्याप्त सिद्ध हो गए। जहाँ केंद्र ने सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा बार-बार दिये गए निर्णयों और दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया है, वहीं राज्य सरकारें राजनीतिक स्वार्थ-सिद्धि के कारण सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का पालन नहीं कर रही हैं।

    निष्कर्षतः कह सकते हैं कि कावेरी जल विवाद किसी-न-किसी रूप में जल और सभ्यता के संबंध को उल्लेखित करता है। अतः आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे विकल्पों की खोज करें, जिससे जल की पर्याप्त उपलब्धता बनाई रखी जा सके और सभ्यता के विकास का केंद्र मानव हिंसक घटनाओं को न दोहराए।

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