यद्यपि भारत में सिविल सेवाओं ने स्वतंत्रता पश्चात परिस्थितियों के प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है लेकिन वर्तमान में इनके कार्य-निष्पादन में कुछ चिंताएँ उजागर हुई हैं। इन चिंताओं को स्पष्ट करते हुए इनके लिये उचित समाधान सुझाएँ।
उत्तर :
सिविल सेवाओं को भारतीय प्रशासन का ‘स्टील फ्रेम’ कहा गया, जिन्होंने विविधताओं से परिपूर्ण भारत में व्याप्त जाति, संप्रदाय, धर्म, क्षेत्र, विचारधारा आदि पर आधारित टकरावों से निपटते हुए भारत की एकता-अखंडता को बनाए रखने और शांति की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। फिर भी, वर्तमान में इनके कार्य निष्पादन के संबंध में कुछ चिंताएँ उजागर हुई है-
- इन सेवाओं में कठोर पदानुक्रम, प्रणालीगत जड़ता और अधिक केंद्रीकरण की प्रवृत्ति के कारण यथास्थितिवाद को बढ़ावा मिला है।
- सेवाओं में परिणामोन्मुखता के बजाय स्थापित प्रक्रियाओं के कठोर अनुसरण पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
- सिविल सेवकों के उत्तरदायित्व निर्धारण के संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देशों का अभाव है।
- आर्थिक संवृद्धि, शहरीकरण, पर्यावरण अवक्रमण, तीव्र प्रौद्योगिकी परिवर्तन के इस दौर में सिविल सेवाएँ आधुनिक आवश्यकताओं के प्रति तीव्र गति से अनुकूलित नहीं हो पा रही है।
- सिविल सेवाएँ सामान्यज्ञ सेवाएँ बनकर रह गई हैं जो वर्तमान को कटिंग एज (Cutting edge) तकनीक के युग में उपयुक्त नहीं है।
सिविल सेवाओं से संबंधित इन चिंताओं के समाधान के लिये इनमें निम्नलिखित सुधार अपेक्षित हैं-
- सिविल सेवकों का कार्यकाल निश्चित किया जाए, जिससे पहले उनका स्थानांतरण न किया जाए।
- वरिष्ठ कार्यकारी पदों पर नियुक्ति के लिये प्रतियोगिता प्रणाली लागू की जाए एवं इसमें तकनीक के प्रति सुग्राह्यता को भी एक मापदंड माना जाए।
- ‘कार्य निष्पादन प्रणाली’ को विकसित किया जाए। निश्चित किये गए कार्य का मूल्यांकन संसाधन उपयोग एवं उसमें लगे समय के आधार पर किया जाए।
- निश्चित अंतरालों में इनके लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाएँ ताकि वे बदलती परिस्थितियों से अनुकूलित हो सकें।
- सिविल सेवा के लिये समर्पित एक ऐसा कानून बनाया जाए जिनमें उन मूल्यों का भी उल्लेख हों जो एक सिविल सेवक में अपेक्षित हों।
इस प्रकार, उपर्युक्त सुधारों के माध्यम से सिविल सेवाएँ बदलते परिदृश्य एवं नवीन चुनौतियाँ का सामना करने में स्वयं को अनुकूलित कर पाने में सफल हो पाएगी।