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प्रश्न :
सार्वजनिक क्षेत्र की नियुक्तियों एवं विधायिका के सभी स्तरों पर महिलाओं को आरक्षण प्रदान करने के प्रयास को महिलाओं के संपूर्ण विकास की दिशा में एक प्रगतिशील कदम कहा जा सकता है किंतु ऐसी अनेक चुनौतियाँ विद्यमान हैं जो इसके लाभों की सीमित कर सकती हैं। स्पष्ट करें।
19 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
भारत में विभिन्न राज्य सरकारों ने सरकारी सेवाओं में महिलाओं को अलग से आरक्षण प्रदान किया है। इसी प्रकार पंचायती राज्य संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण प्राप्त है। वहीं राज्य एवं केंद्रीय विधायिका में महिला आरक्षण की मांग भी लंबे समय से की जा रही है।
महिलाओं को आरक्षण प्रदान करना एक प्रगतिशील कदम कहा जा सकता है, क्योंकि-
- महिलाओं की सेवाओं में भागीदारी सीमित है जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है। आरक्षण से महिलाएँ जहाँ देश की विकास प्रक्रिया में भागीदार बनेंगी वहीं उनका सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक उत्थान भी होगा।
- महिलाओं का नियोजन अधिकांशतः अनौपचारिक क्षेत्र में होने से उन्हें पर्याप्त वेतन एवं अन्य सुविधाएँ नहीं मिल पाती। इस आरक्षण से उन्हें औपचारिक क्षेत्र में लाने में मदद मिलेगी जिससे उनका वेतन समान कार्य के लिये पुरुषों के समान मिलेगा, साथ ही मातृत्व अवकाश सहित अन्य सुविधाएँ भी मिल पाएंगी।
- ऐसे आरक्षण से बालिकाओं में शिक्षा के प्रति रूझान बढ़ेगा जो भारत के लिये शिक्षित, जागरूक और कौशल युक्त पीढ़ी तैयार करने में मददगार साबित होगा।
- विधायिका में महिलाओं को आरक्षण से कानून निर्माण के दौरान महिलाओं की भागीदारी के कारण इनमें महिला हितों को बढ़ावा मिलेगा। पंचायती राज संस्थाओं में महिला आरक्षण के अनेक सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
हालाँकि उपर्युक्त बिंदु यह दर्शाते हैं कि यह एक प्रगतिशील कदम है किंतु इसके लाभों को सीमित करने वाली अनेक चुनौतियाँ भी विद्यमान हैं-
- सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों की संख्या सीमित है इसलिये सार्वजनिक क्षेत्र में आरक्षण की नीति केवल प्रतीकात्मक हो सकती है।
- अधिकांश पंचायती राज संस्थाएँ जहाँ महिलाओं को चुना गया है। परिवार के पुरुष सदस्य ही वास्तविक शक्ति का प्रयोग करते हैं।
- विधायिका में महिला आरक्षण के संबंध में राजनीतिक दल एकमत नहीं हैं। यदि यह आरक्षण मिलता भी है तो इसका लाभ केवल समृद्ध और राजनीति से जुड़े परिवारों को ही मिलने की संभावना है।
- कौशल विकास, सुरक्षा व्यवस्था, परिवहन आदि सुविधाएँ सुनिश्चित किये बिना इस नीति को लागू करना संभव नहीं है।
निष्कर्षः सरकार को महिला आरक्षण की नीति लागू कर महिलाओं की सार्वजनिक क्षेत्र और विधायिका में भूमिका बढ़ाने का कार्य करना चाहिये तो दूसरी तरफ उनके ज्ञान, शिक्षा और स्वास्थ्य के स्तर, कौशल स्तर, प्रशिक्षण आदि में वृद्धि कर उनका सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना चाहिये। इस प्रकार महिलाओं के संपूर्ण विकास के लिये ‘कल्याण दृष्टिकोण’ एवं ‘सशक्तीकरण दृष्टिकोण’, दोनों का उपयोग करना चाहिये।
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