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प्रश्न :
भारत के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग लगातार काफी नीची रही है। इसके ज़िम्मेदार कारक क्या हैं? किन उपायों के माध्यम से इन संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग में इज़ाफा किया जा सकता है?
24 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
भारत के शीर्ष ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों’ (IITs) एवं भारतीय विज्ञान संस्थान (IIS) पिछले कुछ वर्षों से कभी-कभी शिक्षण संस्थानों की वैश्विक रैंकिंग (क्यू एस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग) के शीर्ष 200 में स्थान पा जाते हैं, लेकिन फिर भी अन्य देशों के मुकाबले इन भारतीय संस्थानों की रैंकिंग काफी खराब रहती है।
भारतीय संस्थानों की खराब रैंकिंग के लिये ज़िम्मेदार कारकः
- भारत की उच्च शिक्षा में विश्वस्तरीय गुणवत्ता का अभाव है।
- भारतीय संस्थानों में शिक्षक-छात्र अनुपात वैश्विक अनुपात से काफी कम है। साथ ही शिक्षण की गुणवत्ता और नवाचारों के प्रति रुझान में काफी कमी दिखाई देती है।
- भारतीय संस्थानों में अधिकांशतः पुराने पाठ्यक्रम चल रहे हैं जिनको समय-समय पर अद्यतन नहीं किया जाता है। शीर्ष शिक्षण संस्थानों में भी प्रायोगिक कार्य आशानुरूप नहीं हो रहा है।
- शिक्षण संस्थानों का अवसंरचनात्मक ढाँचा कमज़ोर है तथा प्रयोगशालाओं की संख्या, उपकरणों की संख्या एवं, गुणवत्ता कम है।
समाधान
- शैक्षिक अवसंरचनात्मक ढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये ताकि ज्ञान एवं शिक्षा की गुणवत्ता को मज़बूत आधार मिल सके।
- वैश्विक ज्ञान, संस्कृति एवं नवाचार के प्रति सुग्राह्यता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। विश्व के शीर्ष संस्थानों की शिक्षण संस्कृति एवं वातावरण का अनुसरण करना चाहिये।
- ऐसी शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना करनी चाहिये जो न केवल कुशल मानव संसाधन उत्पन्न करें, बल्कि स्वदेशी अनुसंधान और विकास को भी बढ़ावा दे सकें तथा देश के बौद्धिक और उद्यमशील नेतृत्व को ऊर्जा प्रदान कर सकें।
भारतीय संविधान में उल्लिखित मूल कर्तव्यों के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।’ इस प्रकार जनता में वैज्ञानिक सोच पैदा करने से शोध एवं अनुसंधान की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा जो शीर्ष संस्थानों की स्थिति में सुधार की दिशा में दूरगामी किंतु मज़बूत कदम सिद्ध होगा।
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