भारत में सिविल सेवाओं के ऐतिहासिक विकास का कालक्रमानुसार वर्णन करते हुए भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर :
राज्य द्वारा निर्मित विधियों को कार्यरूप में कार्यान्वित करने की ज़िम्मेदारी लोक सेवाओं/सिविल सेवाओं पर होती है अतः सिविल सेवाएँ प्रत्येक राज्य का आवश्यक अंग रही हैं।
सिविल सेवाओं का विकासक्रम
- प्राचीन भारत में यद्यपि आधुनिक अर्थ एवं आयाम वाली सिविल सेवा के स्पष्ट उदाहरण नहीं मिलते फिर भी तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप सिविल सेवाओं का गठन किया गया था। मौर्य प्रशासन में सिविल सेवाओं का संकेत मिलता है, जिसमें ‘अध्यक्ष’, ‘राजुक’, ‘पण्याध्यक्ष’, ‘सीताध्यक्ष’ जैसे सिविल सेवा अधिकारी महत्त्वपूर्ण भूमिका में थे। मुगल काल के दौरान अकबर ने एक भूमि राजस्व प्रणाली प्रारंभ की जिसके कार्यान्वयन के लिये नए पदों का सृजन किया गया।
- भारत में सिविल सेवा के वर्तमान ढाँचे की शुरुआत लार्ड कार्नवालिस द्वारा की गई। कार्नवालिस ने इन सेवाओं को पेशेवर सेवाओं में परिवर्तित कर ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों को कार्यान्वित करने का उपकरण बनाया। 1857 में मैकाले समिति की सिफारिशों के आधार पर सिविल सेवाओं में चयन के लिये प्रतियोगी परीक्षा को लागू किया गया।
- स्वतंत्रता के बाद भारतीय सिविल सेवाओं को भारतीय लोकतांत्रिक एवं कल्याणकारी राज्य के आदर्शों को लागू करने का साधन बनाया गया। इन सेवाओं ने ‘स्टील फ्रेम’ की तरह कार्य करते हुए भारतीय एकता, अखंडता और संप्रभुता को अक्षुण्ण बनाने का कार्य किया।
- वर्तमान में भारतीय सेवाओं की प्रकृति विनियामक के स्थान पर समन्वयक की हो गई है। सुशासन की बढ़ती मांगों, सिटिज़न चार्टर, सूचना का अधिकार, अधिकारों के प्रति जागरूकता, सेवा प्रदाता राज्य की अवधारणा आदि स्थितियों ने सिविल सेवाओं की तटस्थता, निष्पक्षता, वस्तुनिष्ठता और दक्षता में वृद्धि कर उसे समाजिक-आर्थिक न्याय की दिशा में उन्मुख किया है।
भारतीय लोकतंत्र में सिविल सेवाओं की भूमिका
- सिविल सेवा का सर्वप्रमुख कार्य राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्मित नीतियों को कार्यान्वित करना है।
- सिविल सेवक राजनीतिक कार्यपालिका को नीति-निर्माण में परामर्श और तकनीकी सहायता प्रदान कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- राजनीतिक कार्यपालिका अथवा मंत्रियों द्वारा अपने कई अधिकारों का सिविल सेवकों को प्रत्यायोजन (delegation) कर दिया जाता है। अतः इन पर सिविल सेवक नियम और विनियम तैयार करते हैं।
इस प्रकार, सिविल सेवक भारत में सामाजिक समानता व आर्थिक विकास जैसे कल्याणकारी लक्ष्यों तथा नीति निदेशक तत्त्वों में उल्लिखित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये मुख्य उपकरण सिद्ध हुए हैं जिससे भारत एक सशक्त एवं मज़बूत लोकतंत्र के रूप में उभरा है।