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प्रश्न :
एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा (AAGC) कौन से उद्देश्यों पर केन्द्रित है ? भारत के दृष्टिकोण से यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
09 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
एशिया-अफ्रीका विकास गलियारे का उद्देश्य अफ्रीका में गुणवत्तापूर्ण आधारभूत संरचना का विकास करना है, जो डिजिटल संपर्क से युक्त हो | इस परियोजना के अंतर्गत भारत और जापान एक साथ मिलकर अफ्रीका, ईरान, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया में कई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर काम करेंगे |
इसकी प्राथमिकताओं में विकास और सहयोग परियोजनाएँ, संस्थागत संपर्क क्षमता तथा कौशल विकास एवं मानव संसाधन प्रशिक्षण शामिल हैं। इसमें पूरे अफ्रीका में ई-नेटवर्क की स्थापना,बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, हरित परियोजनाओं में निवेश,नवीकरणीय ऊर्जा का विकास, बिजली-खरीद, कृषि प्रसंस्करण, आपदा प्रबंधन में सहयोग,संयुक्त उद्यम परियोजनाओं और निजी क्षेत्र के वित्त पोषण को बनाए रखने के लिये क्षमता विकसित करना शामिल है।भारत के लिये इस गलियारे की प्रासंगिकता:-
- भारत की इस पहल को चीन की महत्त्वाकांक्षी योजना ‘वन बेल्ट वन रोड’ प्रोजेक्ट को टक्कर देने के लिये भारत की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
- अफ्रीका ही भविष्य में विकास का क्षेत्र बनने जा रहा है | जिस तरह गत 30-40 वर्षों से विकास की संचालक शक्ति एशिया रहा है, उसी तरह अगले 30-40 वर्षों तक संचालक शक्ति (ड्राइविंग फोर्स ) अफ्रीका रहने वाला है | जिस तीव्रता से वहाँ की जनसंख्या बढ़ रही है, उससे यह तय है कि अगले 10-20 सालों में वहाँ बुनियादी ढाँचे की भारी मांग होगी |
- अफ्रीका, जो वस्तुएँ एवं सेवाएँ भारत से सस्ते में प्राप्त कर सकता है, वही सामान उसे यूरोप और अमेरिका से महँगा मिलता है | अफ्रीकी देशों को सस्ती, उचित और अनुकूल प्रौद्योगिकी प्रदान करने में भारत अग्रणी देश है |
- अफ्रीका में अनेक भारतीय कंपनियाँ कार्य कर रही हैं | इन कंपनियों को वहाँ की स्थानीय आवश्यकताओं की अच्छी जानकारी है | हमें इसका लाभ उठाना चाहिये| भारत उनकी आवश्यकताओं की वस्तुओं को यूरोप और अमेरिका की तुलना में सस्ते में बना सकता है |
एशिया-अफ्रीका विकास गलियारा कोई एकदम से नया विचार नहीं है, बल्कि पिछले कई वर्षों से इस पर विचार चल रहा था| निश्चित रूप से चीन की वन बेल्ट वन रोड में सक्रियता ने इस विचार को गति प्रदान कर दी है| चीन ने अफ्रीका में बहुत निवेश किया है| अतः भारत और जापान के पास अब अधिक समय नहीं है| दोनों देशों को कुछ विशेष क्षेत्रों की पहचान कर कार्य प्रारंभ कर देना चाहिये तथा उसके आधार पर इच्छुक भागीदारों के बीच जाकर इस पहल को रखना चाहिए| इससे इस परियोजना की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी| अफ्रीका में अनेकों संभावनाएँ हैं| हमें तेज़ी से कार्य करना होगा| अगर अफ्रीका हमारे करीब आने को इच्छुक है, तो हमें भी उसका स्वागत करना चाहिये|
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