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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के नीति-निर्माताओं द्वारा लोक नीतियों का निर्माण, विशेष रूप से बच्चों और युवाओं को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने विचार की पुष्टि करें।

    16 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    सन् 2011 की जनगणना के अनुसार, 0 से 6 वर्ष के आयु वर्ग वाले बच्चों का भाग कुल जनसंख्या का 13% था। एक रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत 64% युवा आबादी के साथ विश्व की सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। जब पश्चिमी देशों के अलावा जापान और चीन की कामगार आबादी बूढ़ी हो रही है, तब भारत की यह जनसांख्यिकीय क्षमता उसकी अर्थव्यवस्था के विकास के लिये स्वतः ही अभूतपूर्व बढ़त प्रदान करती है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, यदि इस जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति का लाभ उठा लिया जाए तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2% की वृद्धि हो जाएगी। 

    नीति-निर्माण के दौरान बच्चों और युवाओं को केंद्र में रखने के कारण-

    • भारत में लोक शिक्षा केंद्रों की स्थिति दयनीय है। स्कूली इमारतों, शौचालयों और शिक्षकों की गुणवत्ता में कमी जैसी अवसंरचनात्मक खामियों के साथ-साथ सरकारी विद्यालयों का बंद किया जाना भी चिंताजनक है। इन स्थितियों से साफ ज़ाहिर होता है कि शिक्षा संबंधी नीति-निर्माण का केंद्र बच्चे नहीं हैं। 
    • भारत के अधिकांश बच्चे बहुआयामी रूप से गरीब हैं। कुपोषण,बौनापन आदि ऐसी गंभीर समस्याएँ हैं जो इनके क्षमता विकास को बाधित करती हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य की नीतियाँ बनाते समय इनका विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये। 
    • व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। यह एक विरोधाभास है कि दुनिया के दूसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश में कई महत्त्वपूर्ण सेवाओं में कर्मचारियों की कमी है।
    • युवाओं को सशक्त बनाने और अगली पीढ़ी की आर्थिक सुरक्षा हेतु आज के युवाओं के लिये रोज़गार पैदा करना बहुत ज़रूरी है। अन्यथा यह बेरोज़गार युवा आबादी जब बूढ़ी होगी तब वह पूर्णतः राज्य पर निर्भर करेगी, जो कि सार्वजनिक व्यय पर अनावश्यक दबाव को बढ़ाएगा।

    विख्यात अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के अनुसार- “ भारत अकुशल और अस्वस्थ कामगारों के दम पर विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनना चाहता है।” यहाँ उनके कहने का तात्पर्य भी यही है कि आज के बच्चे कल के नागरिक हैं। बच्चों और युवाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा में पर्याप्त निवेश किये बिना और उनको नीति-निर्माण का केंद्र बनाए बिना यह संभव नहीं हो पाएगा। 

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