पिछले कुछ वर्षों से भारतीय राजनीति की कर्त्तव्यनिष्ठा और चरित्र प्रश्नगत होने लगा है। क्या भारतीय राजनीति को पुनः एक संतुलित और ज़िम्मेदार राजनीतिक वर्ग की आवश्यकता है? टिप्पणी करें।
उत्तर :
भारतीय राजनीति में पिछले कुछ समय से कर्त्तव्यनिष्ठा एवं नैतिकता के पतन की प्रवृत्ति दिखाई पड़ रही है। इसके लक्षण साफ तौर पर राजनीतिक वर्ग में होने वाली बहस और चर्चाओं के गिरते स्तर में दिखाई देते हैं। हम कुछ और ऐसी प्रवृत्तियों पर दृष्टिपात करते हैं जो सिद्ध करती हैं कि भारतीय राजनीति एक नैतिक और चारित्रिक संकट से गुज़र रही है –
- संसद और राज्य विधानसभाओं में जनता के प्रतिनिधियों की उत्पादकता और काम के घंटे लगातार कम होते जा रहे हैं। अब इन सदनों में जनहित के मुद्दों पर विमर्श के बजाए हंगामों के दृश्य आम हो गए हैं।
- विभिन्न दलों के नेताओं द्वारा भड़काऊ और विकृत बयानों का दिया जाना आपसी संवाद के माहौल को दूषित कर रहा है, जबकि संवाद लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
- राजनीतिक दलों ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया के साथ गठजोड़ करके उसे पंगु बना दिया है। मीडिया अब जनता से जुड़े मसले उठाने के बजाए इन दलों की चाटुकारिता में लिप्त दिखाई देता है। स्थिति ये है कि प्रिंट से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सभी ने “पेड मीडिया” का विशेषण पा लिया है।
- अपराधियों का संसद और राज्य विधायिकाओं में सदस्य के रूप में चुनकर आना न केवल ज़ारी है, बल्कि यह प्रवृत्ति चुनाव-दर-चुनाव बढ़ती जा रही है।
- क्रोनी कैपिटलिज्म की प्रवृत्ति ने सत्ता-उद्योगपति गठजोड़ से पारदर्शिता और प्रतिस्पर्द्धा को गहरा आघात पहुँचाया है। इसने न केवल मुक्त उद्यमशीलता और अवसरों के विस्तार में बाधा पहुँचाई है, बल्कि आर्थिक वृद्धि को भी सीमित किया है।
इस संकट से उबरने के लिये भारतीय राजनीति को स्वयं में तत्काल कुछ बदलाव करने होंगे-
- हमें दूरदर्शी नेतृत्व प्रदान करने वाले समर्पित राजनेताओं का एक नया वर्ग खड़ा करना होगा, जो देशहित के मसलों पर दलगत राजनीति से उठकर एकजुटता दिखाने का साहस रखता हो।
- राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को अपने बयानों और प्रतिक्रियाओं में उग्र होने से बचना चाहिये। जनता और अपने विपक्ष से संवाद के दौरान मर्यादा एवं सहजता का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये।
- सभी दलों को एकजुट होकर राजनीति के अपराधीकरण को रोकने का प्रयास करना चाहिये ,तभी आम नागरिक का भारतीय राजनीति पर भरोसा कायम रह पाएगा।
- संसद और विधानमंडलों के सदस्यों को अपने दायित्व का निर्वाह ईमानदारी से करना होगा। उन्हें ये ध्यान रखना होगा कि मतदाताओं का एक-एक मत उनकी अपेक्षाओं का प्रतीक है और इन अपेक्षाओं को पूरा करना राजनीतिक वर्ग की ज़िम्मेदारी है।
ऐसा नहीं है कि भारतीय राजनीति हमेशा से ही नैतिक संकट से जूझती रही है। देश ने ऐसे कई जननेताओं को देखा है जिनके चरित्र और नेतृत्व दोनों ने ही भारतीय राजनीति को गौरवान्वित किया है। अभी भी कुछ ऐसे राजनीतिक व्यक्ति हमारी राजनीति में हैं जिनका सरोकार केवल जनता के मुद्दों से है। हमें ये प्रयास करना होगा कि देश की राजनीति में ऐसे लोगों की संख्या और बढ़ाई जाए, ताकि देश में एक ऐसा राजनीतिक वर्ग तैयार हो जो कर्त्तव्यनिष्ठ और नैतिक रूप से प्रबल हो।