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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वे कौन से कारण हैं जिनसे राज्यसभा की भूमिका और कार्यपद्धति पर प्रश्न उठाए जा रहे हैं? संसद के उच्च सदन के रूप में राज्यसभा को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिये क्या सुधार करने चाहिये?

    25 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा

    • राज्यसभा का संक्षिप्त परिचय दें।
    • वर्तमान में राज्यसभा से संबंधित विवादों और मसलों का उल्लेख करें। 
    • राज्यसभा की संरचना, कार्यप्रणाली आदि में संभावित सुधारों पर चर्चा करें।
    • साररूप में राज्यसभा का महत्त्व लिखकर उत्तर का अंत करें। 

    सन् 1919 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के तहत “काउंसिल ऑफ स्टेट्स” के रूप में दूसरे सदन की स्थापना के साथ भारत में द्विसदनीय विधायिका की शुरुआत हुई थी। स्वतंत्रता के बाद निर्मित संविधान में राज्यसभा को उच्च सदन के रूप में उल्लिखित किया गया है। सदन में राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली राज्यसभा ने अब तक विधायी प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और विधेयकों पर बौद्धिक बहस करने के साथ ही कई अवसरों पर जनविरोधी कानूनों को पारित होने से रोका है। 

    पिछले कुछ समय से राज्यसभा की कार्यशैली में निम्नलिखित नकारात्मक प्रवृत्तियाँ देखी गईं, जिनके कारण उसकी प्रासंगिकता पर ही सवाल उठने लगे-

    • राज्यसभा, कुछ समय से हारे हुए नेताओं, सत्ता पक्ष के करीबियों और कारोबारियों की शरणस्थली बन गई है। जनता द्वारा चुनावों में प्रत्यक्ष रूप से अस्वीकार कर देने के बाद भी नेताओं को राज्यसभा के रास्ते मंत्री पदों पर सुशोभित किया जा रहा है। 
    • विधेयकों पर बौद्धिक बहस की जगह राज्यसभा अब हंगामे के सदन के रूप में ज़्यादा दिखाई पड़ती है। ऐसे में सदन की उत्पादकता और कार्य के घंटों में कमी होना स्वाभाविक है। 
    • राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा 12 विशिष्ट व्यक्तियों का नामनिर्देशन, विधायन के दौरान उनकी विशेषज्ञता का लाभ लेने के लिये किया जाता है, लेकिन इन सदस्यों की सदन से लंबी अनुपस्थिति ने इनकी सदस्यता के औचित्य पर ही सवाल उठा दिये हैं। 
    • सत्ता पक्ष द्वारा ये आरोप लगाया जाता है कि राज्यसभा, जानबूझकर कानूनों को पारित करने में देरी करती है। 
    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में 2003 में संशोधन के माध्यम से राज्यसभा में निर्वाचन के लिये उम्मीदवार की उस राज्य में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई, जिस राज्य से वह चुनकर आता है। इसके कारण अब सदस्य उन राज्यों से चुनकर आते हैं , जहाँ वे न तो निवासी रहे हैं और न वहां के वास्तविक मुद्दों का उनको ज्ञान है। 

    संविधान सभा में द्वितीय सदन की उपयोगिता और अनुपयोगिता पर विस्तृत बहस हुई थी। अंततः प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित एकल सभा (लोकसभा) को स्वतंत्र भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों के लिये अपर्याप्त समझा गया। संवैधानिक प्रावधानों के पालन और भारतीय लोकतंत्र के लिये राज्यसभा का महत्त्व अत्यधिक है। राज्यसूची के विषयों पर संसद द्वारा कानून बनाने, नई अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन में, आपातकाल की उद् घोषणा के अनुमोदन आदि में राज्यसभा की विशिष्ट भूमिका है। इसकी प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिये-

    • जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में पुनः संशोधन कर उस प्रावधान को जोड़ा जाना चाहिये जिसके तहत राज्यसभा सदस्य जिस राज्य से चुनकर आते हैं, उन्हें उसी राज्य में मतदाता के रूप में पंजीकृत होना अनिवार्य हो। 
    • नामनिर्देशित सदस्यों हेतु निर्धारित क्षेत्रों में कृषि, ई-गवर्नेंस, अंतरिक्ष विज्ञान आदि क्षेत्रों को भी अलग से जोड़ा जाना चाहिये। राज्यसभा सदस्यों की अनुपस्थिति सबंधी नियमों को भी थोड़ा सख्त बनाए जाने की आवश्यकता है। 
    • लोकसभा की तरह राज्यसभा में भी जनसंख्या के आधार पर सीटों का वितरण युक्तिसंगत नहीं है। अमेरिकी सीनेट में भी प्रति राज्य 2 सदस्यों की व्यवस्था है। इससे छोटे राज्यों का संघ में समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। पुंछी आयोग ने भी इसकी अनुशंसा की है।

    भारत जैसे विशाल भू-भाग और विविधता वाले देश में द्विसदनीय व्यवस्था ही हितकर है। राज्यसभा राष्ट्रीय स्तर पर राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। यह स्थायी सदन के रूप में बौद्धिक विचार-विमर्श का सदन है। यह लोकसभा में बहुमत वाले दल की संभावित निरंकुशता को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार के कार्यों पर निगरानी और संतुलन (check and balance) रखने के लिये राज्यसभा एक ज़रूरी उपकरण है। अतः भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में राज्यसभा अत्यंत प्रासंगिक सिद्ध होती है।

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