लोक अदालतें क्या हैं? भारतीय न्यायिक तंत्र में इनके योगदान पर चर्चा करें।
28 Aug, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा-
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लोक अदालतें ऐसे मंच या फोरम हैं जहाँ न्यायालय में लंबित या मुकदमे के रूप में दाखिल नहीं किये गए मामलों का सौहार्द्रपूर्ण तरीके से निपटारा किया जाता है। यह सामान्य न्यायालयों से अलग होता है, क्योंकि यहाँ विवादित पक्षों के बीच परस्पर समझौते के माध्यम से विवादों का समाधान किया जाता है।
लोक अदालत की स्थापना का विचार सर्वप्रथम भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी.एन.भगवती द्वारा दिया गया था। सबसे पहली लोक अदालत का आयोजन 1982 में गुजरात में किया गया था। 2002 से लोक अदालतों को स्थायी बना दिया गया।
लोक अदालतों में सभी दीवानी मामले, वैवाहिक विवाद, नागरिक मामले, भूमि विवाद, मज़दूर विवाद, संपत्ति बँटवारे संबंधी विवाद, बीमा और बिजली संबंधी आदि विवादों का निपटारा किया जाता है। विधि के तहत ऐसे अपराध जिनमें राजीनामा नहीं हो सकता तथा ऐसे मामले जहाँ संपत्ति का मूल्य एक करोड़ रुपए से अधिक है, का निपटारा लोक अदालतों में नहीं हो सकता।
लोक अदालतों की निम्नलिखित विशेषताओं के माध्यम से हम भारतीय न्याय-तंत्र में इसके योगदान को समझ सकते हैं–
लोक अदालतों का सबसे बड़ा गुण निःशुल्क तथा त्वरित न्याय है। ये विवादों के निपटारे का वैकल्पिक माध्यम है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य अक्षमता के कारण न्याय पाने से वंचित न रह जाए। इन अदालतों से वर्तमान भारतीय न्यायिक प्रक्रिया को नवजीवन मिला है, जो मुकदमों के बोझ तथा महँगे न्याय की समस्या से ग्रसित होकर निष्क्रिय सी हो गई थी। बातचीत और परस्पर समझौते का जो अवसर मुकदमे की प्रारंभिक अवस्था में खो दिया जाता है, वह लोक अदालत नामक नवीन व्यवस्था से देने का प्रयास किया जाता है। यह भी स्मरण रखा जाना चाहिये कि लोक अदालत वर्तमान व्यवस्था का विकल्प नहीं, बल्कि एक पूरक प्रयास है।