विधायिका के विशेषाधिकार से क्या तात्पर्य है ? इससे संबंधित प्रावधानों को क्या फिर से संहिताबद्ध किये जाने की आवश्यकता है? टिप्पणी करें।
18 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा-
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भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 तथा 194 के अनुसार क्रमशः संसद तथा राज्य विधायिका के सदस्यों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। ये अनुच्छेद सांसदों तथा विधायकों को संविधान के प्रावधानों तथा सदन की प्रक्रिया के अनुसार भाषण की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। इसके अंतर्गत सदन या उसकी किसी समिति के लिये किये गए वोट, कार्यवाही या रिपोर्ट के लिये देश की किसी भी अदालत के समक्ष जवाबदेही से मुक्त रखा जाता है। अन्य मामलों में प्रत्येक सदन की शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों को समय-समय पर संसद द्वारा निर्धारित किया जाता है। संसद या विधानमंडल किसी भी व्यक्ति को विशेषाधिकार हनन के मामले में अर्द्धन्यायिक निकाय की तरह सज़ा भी सुना सकते हैं। इसमें प्रत्येक सदन के नियम और विशेषाधिकारों की एक समिति के गठन का प्रावधान है। इस समिति की सिफारिशों पर सदन चर्चा करता है एवं सदन का स्पीकर सज़ा का आदेश दे सकता है।
हाल ही में कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने अपनी विशेषाधिकार समितियों की दो अलग-अलग रिपोर्टों के आधार पर दो पत्रकारों को 1 वर्ष के कारावास का आदेश दिया है। विधायिका को प्राप्त ये विशेषाधिकार निम्नलिखित कारणों से विवाद और आलोचना का विषय बनते हैं -
ये प्रावधान विधायिका को अपने विशेषाधिकार के मामले में एकमात्र तथा अनन्य न्यायाधीश बनाते हैं, जो कि शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत तथा नैसर्गिक न्याय की अवधारणा का उल्लंघन करते हैं। अतः इन प्रावधानों को पुनः संहिताबद्ध किये जाने की आवश्यकता है।