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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    समावेशी विकास लक्ष्यों में एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में “समावेशी शहर और समुदाय” की संकल्पना की गई है। समावेशी शहर और समुदाय की आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए इसकी प्राप्ति के उपायों की चर्चा करें।

    25 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • समावेशी विकास की परिभाषा दें ।
    • भारत के शहरों की यथास्थिति को संक्षिप्त में बताएँ।
    • समावेशी शहरों की आवश्यकता को समझाएँ।
    • शहरों के समावेशी विकास हेतु उपाय सुझाएँ।
    • निष्कर्ष

    ऐसा विकास जो न केवल नए आर्थिक अवसरों को पैदा करे, बल्कि समाज के सभी वर्गो के लिए सृजित ऐसे अवसरों की समान पहुँच को सुनिश्चित भी करे हम उस विकास को समावेशी विकास कह सकते हैं। 

    वर्ष 2030 तक शहरी क्षेत्रों में भारत की आबादी का 40% रहेगा और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 75% का होगा । इसके लिए भौतिक, संस्थागत, सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढांचे के व्यापक विकास की आवश्यकता है। ये सभी जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने एवं लोगों और निवेश को आकर्षित करने, विकास एवं प्रगति के एक गुणी चक्र की स्थापना करने में महत्वपूर्ण हैं।

    समावेशी विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये समावेशी शहरों की आवश्यकता को हम निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं- 

    • तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के कारण शहरों में बुनियादी सुविधाओं की आपूर्ति एक चुनौती बन गई है। आने वाले वर्षों में शहरों की आबादी में अप्रत्याशित वृद्धि की संभावना को देखते हुए उनके लिये समावेशी नीतियों का निर्माण आवश्यक हो गया है।
    • अनियोजित शहरीकरण ने रहवासियों के समक्ष शहरी बाढ़ जैसी आपदाओं की आवृत्ति बढ़ा दी है। 
    • शहरी मलिन बस्तियां कई प्रकार आर्थिक-सामाजिक विषमताओं को जन्म दे रही हैं। इनसे निपटने के लिये शहरी विकास की समावेशी नीति ज़रूरी है।
    • भारतीय शहर देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अतः इनकी विकासोन्मुख प्रक्रियाओं में समावेशी दृष्टिकोण का होना ज़रूरी है।

    शहरों के समावेशी विकास हेतु उपाय-

    • शहरी निकायों के लिये वित्त की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिये। ताकि शहरों के प्रबंधन में किसी तरह की रूकावट न आए।
    • शहरों में पर्यावरण की कीमत पर नए निर्माणों की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये। 
    • स्मार्ट सिटी मिशन जैसे कार्यक्रमों का प्रभावी क्रियान्वयन शहरों के समावेशी विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
    • समावेशी शहरों का अस्तित्व समावेशी गाँवों से जुड़ा हुआ है, अतः गाँवों में बुनियादी ढाँचे के विकास और रोज़गार की संभावनाओं में वृद्धि के द्वारा ग्रामीणों के शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन को रोका जा सकता है, ताकि शहरों पर दबाव कम हो सके। 

    समावेशी विकास में जनसंख्या के सभी वर्गों के लिये बुनियादी सुविधाओं अर्थात् आवास, भोजन, पेयजल, शिक्षा, कौशल, विकास, स्वास्थ्य के साथ-साथ एक गरिमामय जीवन जीने के लिए आजीविका के साधनों की सुपुर्दगी भी करना है, परन्तु ऐसा करते समय पर्यावरण संरक्षण पर भी हमें पूरी तरह ध्यान देना होगा, क्योंकि पर्यावरण की कीमत पर किया गया विकास न तो टिकाऊ होता है और न समावेशी। वस्तुपरक दृटि से समावेशी विकास उस स्थिति को इंगित करता है, जहाँ सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद की उच्च संवृद्धि दर में परिलक्षित हो तथा आय एवं धन के वितरण की असमानताओं में कमी आए।

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