भारत में अनुसूचित एवं जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संबंधी प्रावधानों की चर्चा करें। क्या ये प्रावधान अपने उद्देश्यों में सफल हो पाए हैं?
27 Sep, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाभारत में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों से संबंधित प्रावधान, जो कि संविधान में निहित हैं-
भारतीय संविधान के भाग-10 में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबंध किये गए हैं।
संविधान की पाँचवी अनुसूची में राज्यों के अनुसूचित क्षेत्र व अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन व नियंत्रण के बारे में चर्चा की गई है। (असम, मेघालय, त्रिपुरा व मिजोरम को छोड़कर)
संविधान की छठी अनुसूची में असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों के लिये पृथक व्यवस्था की गई है।
22वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1969 के माध्यम से संविधान में अनुच्छेद 244 क जोड़ा गया, जो संसद को शक्ति प्रदान करता है कि वह विधि के द्वारा असम के कुछ जनजातीय क्षेत्रों को मिलाकर एक स्वायत्त राज्य की स्थापना और उसके लिये स्थानीय विधानमंडल या मंत्रिपरिषद या दोनों का सृजन कर सकती है।
इन प्रावधानों के क्रियान्वयन को लेकर कुछ विसंगतियाँ भी विद्यमान हैं, जो समय-समय जनजातीय समूहों के विरोध के रूप में प्रकट होती रहती हैं-
कुछ समय पहले छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासियों की महासभा ने बस्तर में संविधान की पाँचवी अनुसूची को असफल बताते हुए छठवीं अनुसूची लागू करने की मांग की थी।
संविधान की पाँचवी अनुसूची प्रदेश के जनजातीय बहुल क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था व नियंत्रण के उद्देश्य से लागू की गई है। इसी तरह से जल,जंगल, ज़मीन पर जनजातियों का अधिकार सुनिश्चित करने के लिये पेसा (PESA) कानून भी लागू किया गया है, किंतु इन दोनों कानूनों से बस्तर में आदिवासियों को विशेष लाभ नहीं हुआ है। शासन- प्रशासन की उदासीनता की वजह से पांचवी अनुसूची व पेसा कानून भी आदिवासियों के साथ न्याय नहीं कर पा रहे हैं।
एक दृष्टिकोण यह भी है कि इन क्षेत्रों के लिये इस तरह के विशिष्ट प्रावधान इनके विकास में बाधक बनते हैं। इन प्रावधानों की वजह से इन क्षेत्रों में निवेश का मार्ग खुल नहीं पाता है और विकास की प्रक्रिया में ये क्षेत्र पीछे रह जाते हैं। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इन जनजातियों का जल, जंगल और ज़मीन से बहुत गहरा संबंध है। इन विशेष प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य ही यह है कि इन क्षेत्रों में विकास की वह प्रक्रिया अपनाई जाए जो इन्हें इनकी जनजातीय संस्कृति से अलग न करे। लघु एवं कुटीर उद्योगों का बड़ा तंत्र बनाकर न केवल इनके विकास को गति दी जा सकती है, बल्कि जनजातियों के सांस्कृतिक संरक्षण का उद्देश्य भी प्राप्त किया जा सकता है।