भारत में वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में स्वयं सहायता समूहों ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है। वित्तीय समावेशन के क्षेत्र में स्वयं सहायता समूहों की गतिविधियों के मार्गदर्शक सिद्धांतों की जाँच करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- स्वयं सहायता समूह और वित्तीय समावेशन को संक्षिप्त में समझाएँ।
- स्वयं सहायता समूहों की भूमिका को समझाएँ।इनके द्वारा पालन किये जाने वाले मार्गदर्शक सिद्धांतों का उल्लेख करें।
- इन समूहों के समक्ष मौजूद चुनौतियों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष
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सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले निर्धन लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन, जिसमें वे अपनी साझा समस्याओं का समाधान, एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से करते हैं, स्वयं सहायता समूह कहलाते हैं, जबकि वित्तीय समावेशन वह प्रक्रिया है, जिसमें समाज के पिछड़े और वंचित लोगों को औपचारिक बैंकिंग में शामिल कर उससे जुड़ी सुविधाओं का लाभ उन तक पहुँचाने का प्रयास किया जाता है।
स्वयं सहायता समूहों की भूमिका –
- ये बैंकों से जुड़े और बैंक सुविधाओं से वंचित समूहों के बीच व्याप्त अंतर को कम करने का काम करते हैं।
- ये समूह न केवल अपने समूहों में बल्कि साथी- समूहों में भी वित्तीय जागरूकता के प्रसार का प्रयास करते हैं।
- ये समूह अपने सदस्यों को छोटी बचतों के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
- स्वयं सहायता समूहों को अपनी आर्थिक गतिविधियों के लिये संस्थागत ऋण आसानी से प्राप्त हो जाता है, जिससे उसके सदस्यों को साहूकारों या अन्य गैर-संस्थागत स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।
- स्वयं सहायता समूह रोज़गार के अवसर सृजित करने के साथ-साथ उद्यम को भी प्रोत्साहित करते हैं।
स्वयं सहायता समूहों के मार्गदर्शक सिद्धांत-
- आपसी विश्वास और समर्थन।
- सामूहिक ज़िम्मेदारी।
- सर्वसम्मति पर आधारित निर्णयन प्रक्रिया।
- प्रत्येक सदस्य की समान रूप से जवाबदेहिता।
चुनौतियाँ-
- जाति और लिंग आधारित भेदभाव के कारण स्वयं सहायता समूहों का मूल उद्देश्य बाधित होता है।
- संचालन संबंधी नियमों का आधिक्य इसकी कार्यप्रणाली को जटिल बनाता है, जबकि इससे जुड़े लोग बिल्कुल ही साधारण पृष्ठभूमि से होते हैं। नए और लाभदायक वित्तीय उत्पादों की जानकारी के अभाव में स्वयं सहायता समूह अपनी बचतों का पूर्णतः लाभ नहीं उठा पाते हैं।
- सदस्यों के लिये उपयुक्त प्रशिक्षण व्यवस्था की कमी भी एक समस्या है।
स्पष्ट है कि स्वयं सेवा समूह वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाल ही में नाबार्ड द्वारा ई-शक्ति पहल के माध्यम से स्वयं सेवा समूहों की कार्यप्रणाली के डिजिटलीकरण का सार्थक प्रयास किया गया है। ऐसे ही अन्य प्रयासों से स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है।