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प्रश्न :
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में की गई, जबकि नाटो की स्थापना एक क्षेत्रीय संगठन के रूप में की गई। किंतु इसके बावजूद अंतराष्ट्रीय संदर्भ में शांति स्थापना हेतु नाटो की भूमिका यू.एन. के समानांतर दिखती है।" कथन का तार्किक परीक्षण कीजिये।
07 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा- - संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के संबंध में संक्षिप्त विवरण दें।
- नाटो की स्थापना के संबंध में संक्षिप्त विवरण दें।
- नाटो की वैश्विक शांति की स्थापना में भूमिका को समझाएँ।
- निष्कर्ष लिखें।
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद आपसी झगड़ों से निपटने हेतु एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता महसूस हुई। इसी संदर्भ में ‘राष्ट्रसंघ’ का उदय हुआ। शुरुआती सफलताओं के बावजूद यह संगठन दूसरा विश्वयुद्ध (1939-45) न रोक सका। दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद सन् 1945 में ‘राष्ट्रसंघ’ के उत्तराधिकारी के रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का मुख्य उद्देश्य है अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को रोकना और राष्ट्रों के बीच सहयोग की राह दिखाना।
वहीं दूसरी तरफ, जब द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ ने पूर्वी यूरोप से अपनी सेनाएँ हटाने से इनकार कर दिया और वहाँ साम्यवादी शासन की स्थापना का प्रयास किया तो अमेरिका ने इसका लाभ उठाकर साम्यवाद विरोधी नारा दिया और यूरोपीय देशों को साम्यवादी खतरे से सावधान किया। फलतः यूरोपीय देश एक ऐसे संगठन के निर्माण हेतु तैयार हो गए जो उनकी सुरक्षा करे। यह संगठन नाटो के रूप में सामने आया। नाटो के संदर्भ में सोवियत संघ ने इसे साम्राज्यवादी और आक्रामक देशों के सैनिक संगठन की संज्ञा देते हुए उसे साम्यवाद विरोधी बताया।
अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में शांति स्थापना हेतु नाटो की भूमिका संयुक्त राष्ट्र के समानांतर दिख रही है। इसके पीछे निम्न कारण हैं- वर्तमान विश्व में वैश्विक आतंकवाद, परमाणु शस्त्र भंडार, चीन के उभार एवं उसके उच्छृंखल व्यवहार, साथ ही मानवता के कथित दुश्मन ‘दुष्ट राज्यों’ से मानवता एवं विश्व की रक्षा करने और शांति की स्थापना के संदर्भ में नाटो संयुक्त राष्ट्र के समकक्ष अपनी भूमिका निभा रहा है।
बदलते परिवेश में ज़रूरतों को पूरा करने के लिये किसी भी संगठन में सुधार और विकास करना लाज़मी है। संयुक्त राष्ट्र संघ भी इसका अपवाद नहीं है। हाल के वर्षों में इस वैश्विक संस्था में सुधार की मांग करते हुए आवाजें उठी हैं। लेकिन सुधारों की प्रकृति के बारे में कोई स्पष्ट राय और सहमति नहीं बन पाई है। संयुक्त राष्ट्र के सामने दो तरह के बुनियादी सुधारों का मसला है। एक तो यह कि इस संगठन की बनावट और इसकी प्रक्रिया में सुधार किया जाए, दूसरे इस संगठन के न्यायाधिकार में आने वाले मुद्दों की समीक्षा की जाए।
लोगों और सरकारों को संयुक्त राष्ट्र संघ तथा दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के समर्थन और उपयोग के तरीके तलाशने होंगे। ऐसे तरीके जो उनके हितों और विश्व बिरादरी के हितों से व्यापक धरातल पर मेल खाते हों।
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