“भारत का कानून धर्मांतरण को प्रतिबंधित नहीं करता जब तक यह स्वैच्छिक है।
09 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा-
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भारत एक बहुधार्मिक समाज है और ऐसे समाज का अस्तित्व तभी संभव है जब सभी धर्मों को बिना किसी भी पक्ष या बिना किसी भेदभाव के समान सम्मान दिया जाए। भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है, सभी धर्मों के लिये समान सम्मान। भारतीय संदर्भ में एक ‘धर्मनिरपेक्ष राज्य’ का मतलब है वह राज्य जो सभी धर्मों की समान रूप से रक्षा करता है और किसी भी धर्म को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता। संस्कृत वाक्यांश ‘सर्व धर्म समभाव’ धर्मनिरपेक्ष राज्य और समाज के लिये सबसे उपयुक्त भारतीय दृष्टि है। चूँकि धर्मनिरपेक्षता शब्द हमारे संविधान में अच्छी तरह से परिभाषित नहीं है जो इसके दुरुपयोग और इसे अपरिभाषित करने के लिये समुचित जगह प्रदान करता है। इस अर्थ में, समय-समय पर धर्मांतरण शब्द का भी दुरुपयोग और इसकी गलत व्याख्या की जाती रही है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25-28, हमारे संविधान द्वारा प्रदत्त एक बुनियादी मौलिक अधिकार है जो कि धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के रूप में उद्धृत है। इसकी किसी भी तरीके से विकृत या गलत व्याख्या नहीं की जानी चाहिये। इस संदर्भ में भारत में धर्मांतरण के अधिकार को देखा जाना चाहिये। भारत के कई हिस्सों से धर्मांतरण के बारे में मिलने वाली सूचनाएँ आम हैं, लेकिन बल, धमकी और प्रलोभन के आरोप इसे संवेदनशील बनाते हैं। इस संबंध में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को प्रख्यापित किया जाता है जो मौलिक अधिकारों के विरुद्ध मजबूर या प्रेरित धर्मांतरण को रोकने के लिये सहायक हैं। इस तरह के कानून विवादास्पद रहे हैं क्योंकि सांप्रदायिक ताकतों द्वारा इसका दुरुपयोग किये जाने का खतरा रहता है। वे राज्य या देश में किसी भी प्रमुख राजनीतिक दल की मौन स्वीकृति हो सकते हैं। कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 25 अपने धर्म में किसी व्यक्ति का धर्म परिवर्तित करने के लिये अधिकार प्रदान नहीं करता अपितु यह अपने धर्म को प्रसारित या प्रचारित करने का अधिकार प्रदान करता है।
हालाँकि, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, छत्तीसगढ़, आदि कई राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को पारित किया है, लेकिन समस्या राज्यों द्वारा उनके कार्यान्वयन के साथ जुड़ी है क्योंकि आमतौर पर इन कानूनों का प्रवर्तन समुदायों में स्थानीय अधिकारियों के हाथों में रहता है जो धार्मिक आधार पर विभाजित हो सकते हैं। यह समाज में मतभिन्नता या आपसी वैमनस्य पैदा कर सकता है।
संक्षेप में, जबरन धर्मांतरण प्रतिबंधित है न कि स्वैच्छिक धर्मांतरण, ताकि धार्मिक कट्टरपंथी अनुचित लाभ नहीं ले सकें और राष्ट्र की एकता और अखंडता को दुष्प्रभावित न करें एवं शांति भंग न कर सकें।