भारत की वर्तमान विदेश नीति में ‘पंचशील’ की जगह ‘पंचामृत’ ने ले ली है, जिसका आधार है- सम्मान, संवाद, समृद्धि, सुरक्षा और संस्कृति एवं सभ्यता। कथन की तार्किकता को सिद्ध करें।
13 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधभारत की स्वतंत्रता के समय तथा उसके पश्चात् जब दुनिया के बहुत से देश उपनिवेशवाद के दौर से बाहर निकल रहे थे, तब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने परस्पर अखंडता एवं प्रभुसत्ता का सम्मान, अहस्तक्षेप की नीति, परस्पर लाभ, अनाक्रमण तथा शांतिपूर्ण सहअस्तित्व से निर्मित पंचशील पर आधारित विदेश नीति का निर्माण किया। यह विदेश नीति मुख्यतः पड़ोसी देशों पर केंद्रित थी; परंतु भारत-चीन युद्ध ने इस नीति पर प्रश्नचिह्न लगा दिया। इसके बावजूद 20वीं सदी की लगभग प्रत्येक सरकार ने इस पर आधारित विदेश नीति का ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पालन किया।
21वीं सदी में बदलते विश्व तथा वैश्विक संबंधों के परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में भारतीय विदेश नीति को पंचशील की बजाय पंचामृत आधारित बना दिया गया।
पंचामृत में मुख्यतः ‘सॉफ्ट पावर’ के तत्त्वों को सम्मिलित करते हुए पड़ोसी एवं एशिया केंद्रित विदेश नीति के दायरे से बाहर निकाल कर विश्व केंद्रित करने का लक्ष्य दृष्टिगोचर होता है। इस नीति के तहत परस्पर सम्मान, संवाद अथवा बातचीत द्वारा विवादों का निपटारा, परस्पर व्यापार एवं अन्य तरीकों से समृद्धि, तकनीक एवं सूचना के आदान-प्रदान से सबकी सुरक्षा तथा सभ्यता-संस्कृति के तत्त्व द्वारा ‘व्यक्ति से व्यक्ति’ जुड़ाव के तरीकों से अंतर्राष्ट्रीय संबंध मजबूत करने का लक्ष्य है।
पंचशील से पंचामृत का बदलाव केवल ‘नीति’ आधारित नहीं है अपितु प्रत्येक क्षेत्र का बदलाव है। अब वैश्विक मुद्दा भौगोलिक उपनिवेशवाद नहीं बल्कि आर्थिक उपनिवेशवाद है, अब खतरा साम्राज्यवाद नहीं अपितु आतंकवाद है, युद्ध अब परंपरागत नहीं साइबर हो गए हैं। अतः नई चुनौतियों से निपटने के लिये नई सक्रिय नीति की आवश्यकता है जिसे पंचामृत पूरा करती है। बदलते वैश्विक परिदृश्य में भौगोलिक-आर्थिक संबंधों के साथ यह नीति ‘अमूर्त संबंधों’ को भी दृढ़ करने पर बल देती है।
नीति का यह बदलाव पूर्णतः नहीं है क्योंकि ‘पंचामृत’ एवं ‘पंचशील’ एक-दूसरे में समाहित है। दोनों ही नीतियाँ ‘परस्पर सम्मान’, विकास एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर आधारित है। इसके अतिरिक्त पंचशील केवल सिद्धांत नहीं है अपितु यह भारत की विदेश नीति का आधार है, जिन पर अन्य सिद्धांतों की संरचना की जा सकती है।
वैश्विक परिदृश्य एवं घरेलू सरकार बदलने से समय-समय पर विदेश नीति में बदलाव तो आए परंतु विदेश नीति पूर्णतः ‘पुनर्संरचित’ नहीं हुई। यही कारण है कि भले ही ‘पंचामृत’ नीति भारतीय विदेश नीति में जुड़ गई हो परंतु व्यावहारिक विदेश नीति आज भी पंचशील से ही संचालित होती है। स्पष्ट है कि ‘पंचामृत’ पंचशील का नवस्वरूप एवं विस्तार है, इसका विकल्प या इससे विस्थापन नहीं।