जहाँ तक कल्याणकारी विधायनों की बात है, कार्यपालिका के सांविधिक दायित्वों को नीति निर्देशक सिद्धांतों के दायित्वों के समतुल्य नहीं रखा जा सकता क्योंकि पूर्ववर्ती का उत्तम क्रियान्वयन कार्यपालिका का पावन कर्त्तव्य है। कार्यपालिका द्वारा सूखा प्रबंधन में निष्फलता के संदर्भ में स्वराज अभियान नामक एनजीओ द्वारा दायर मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय के आलोक में कथन पर चर्चा करें।
20 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाहाल ही में किसानों के लिये कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठन स्वराज अभियान की सूखा प्रबंधन के प्रति निष्फलता पर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (एनडीएमएफ, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल एनडीआरएफ) का संविधान और राष्ट्रीय आपदा योजना संबंधी कार्यों को शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण करने का आदेश दिया।
इस ऐतिहासिक निर्णय को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
सांविधिक दायित्व नागरिकों के सकारात्मक अधिकारों को सुनिश्चित करने का प्रयास होता है। यह कार्यपालिका के कर्त्तव्य निर्वहन के प्रमाण होते हैं। इन दायित्वों का क्रियान्वयन ही कार्यपालिका को विधायिका अर्थात् अप्रत्यक्ष तौर पर जनता के प्रति उत्तरदायित्व को पूर्ण करता है। उल्लेखनीय है कि सूखा प्रबंधन अनुच्छेद 21 के गरिमापूर्ण जीवन जीने से संबंधित है। ऐसी दशा में सूखा प्रबंधन अधिनियमों का क्रियान्वयन मूल अधिकारों को सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक है, जो न्यायालय में प्रवर्तनीय है।
कार्यपालिका को गरिमापूर्ण जीवन जैसे महत्त्वपूर्ण मूल अधिकार की रक्षा हेतु एक राष्ट्रीय योजना बनानी चाहिये। यह हाशिये पर उपस्थित लोगों के अधिकारों के सुनिश्चितिकरण में कार्यपालिका के दायित्व का हिस्सा है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया राष्ट्रीय आपदा योजना निर्माण का आदेश इसी भावना का परिणाम है। उल्लेखनीय है कि न्यायिक हस्तक्षेप के उपरांत जून, 2016 में पहली बार राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (एनडीएमपी) जारी की गई।
सामाजिक न्याय की स्थापना कार्यपालिका का दायित्व है। इस क्रम में संविधान के नीति निर्देशक तत्त्वों में वर्णित कार्यों को कम संसाधन और अप्रवर्तनीयता के आधार पर विलंबित करने वाली कार्यपालिका अपने सांविधिक दायित्वों के प्रति उदासीन नहीं हो सकती है। यह सांविधिक दायित्व कल्याणकारी विधायनों की स्थिति में सकारात्मक अधिकारों को प्रतिष्ठित करने में सहायक होते हैं। अतः कार्यपालिका द्वारा न्यायिक हस्तक्षेप के बिना, इन दायित्वों का यथाशीघ्र क्रियान्वयन ही समावेशी विकास के लक्ष्य-प्राप्ति को सुनिश्चित कर सकता है।