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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पिछले पाँच दशकों से राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का एक साधन बन गया है, इसलिये इस कार्यालय को समाप्त करना बेहतर होगा। क्या आप सहमत हैं? औचित्य के साथ चर्चा कीजिये।

    21 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • राज्यपाल के पद का संक्षिप्त परिचय दें।
    • इससे जुड़े विवादों और विभिन्न समितियों की सिफारिशों का उल्लेख करें।
    • राज्यपाल के पद के औचित्य पर प्रश्न उठाने वाले तर्क प्रस्तुत करें।
    • भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल के पद का महत्त्व बतलाते हुए निष्कर्ष लिखें।

    राज्यपाल राज्य के औपचारिक प्रमुख होते हैं। राज्य की सभी कार्यवाही राज्यपाल के नाम पर की जाती है। किसी राज्य का राज्यपाल केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।

    राज्यपाल का कार्यालय पिछले पाँच दशकों से सबसे विवादास्पद संवैधानिक पद में से एक रहा है। यह विवाद 1959 में राज्य और केंद्र सरकार के बीच राजनीतिक मतभेद के कारण केरल के तत्कालीन राज्यपाल द्वारा केरल सरकार की बर्खास्तगी से शुरू हो गया। इस विवाद ने 1967 में उत्तरी राज्यों में कई गैर-कांग्रेसी सरकार उभरने के बाद से सबसे खराब रूप ले लिया। तब से जब भी विभिन्न दलों ने संघ और राज्यों में सरकार का नेतृत्व किया तब कई राज्यपालों ने पक्षपातपूर्ण ढंग से काम किया।

    अब तक सरकारिया आयोग, पुंछी आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग जैसे कई सुधार आयोगों ने राज्यपाल के कार्यालय में तत्काल सुधार के लिये सिफारिश की है। लेकिन किसी सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और कोई सुधार करने की कोशिश नहीं की, बल्कि इस संस्था का और ज़्यादा दुरुपयोग किया। ऐसे परिदृश्य में कई संगठनों एवं राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा राज्यपाल कार्यालय की उपयोगिता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।

    कुछ विरोधी स्वर उठने लगे हैं कि राज्यपाल एक गैर-निर्वाचित और औपचारिक प्रमुख होने के नाते, शासन में उनकी कोई सक्रिय भूमिका नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त होने के नाते वे चुनी हुई राज्य सरकार के लिये कठिनाई पैदा कर सकते हैं। औपचारिक प्रमुख होने के नाते राज्य के खजाने पर भारी वित्तीय बोझ हो सकता है। इसलिये इस पद को समाप्त करना ही बेहतर होगा।

    राज्यपाल के कार्यालय पर इन सारे विवादों के बावजूद इस पद का राज्य के मामलों में सर्वोपरि महत्त्व है। मंत्रियों की परिषद की नियुक्ति, विधेयकों को स्वीकृति देने और राज्य सरकार के कई अन्य आदेश को उनके नाम पर ही लिया जाता है। राज्य के एक संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राज्यपाल, राज्य और केंद्र सरकारों के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।

    राष्ट्रपति शासन के समय में, वास्तविकता में राज्य चलाने वाले राज्यपाल हैं। इसके अलावा कुछ राज्य के राज्यपालों को कुछ मामलों में विशेष शक्तियाँ प्राप्त हैं।

    राज्यपाल के कार्यालय राज्य के मामलों में अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यालय हैं, इसलिये इसे समाप्त करने की बजाय इसमें सुधार लाने की आवश्यकता है।

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