क्या पर्यावरणीय आंदोलन सरकारी नीतियों को प्रभावित कर रहे हैं? अपने विचार प्रस्तुत करें।
08 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थासरकारी नीतियाँ विकास पर केंद्रित होती हैं। विकास आधारित होने के कारण इन सरकारी नीतियों में अक्सर पर्यावरण की उपेक्षा की जाती है। कुछ नीतियाँ तो पर्यावरण को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। वर्तमान में कुछ अपरिहार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के प्रयास में पर्यावरण का न्यूनाधिक ह्रास तो होता ही है, जैसे-सड़क निर्माण आर्थिक विकास के लिये आज एक ज़रूरी कदम है तथा इसके लिये कई बार पेड़ों की कटाई जैसे पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कदम उठाने पड़ते हैं। पर्यावरण हितैषी समूह सरकार की ऐसी नीतियों का आंदोलनों के माध्यम से विरोध करते हैं।
वन संसाधनों की रक्षा से संबंधित चिपको और एप्पिको आंदोलन भारत में शुरुआती पर्यावरणीय आंदोलनों के उदाहरण हैं। इन आंदोलनों के पश्चात उन क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम नज़र आए तथा वहाँ वनों का उन्मूलन भी कम हुआ। इन आंदोलनों की सफलता ने पर्यावरण संरक्षण को सरकारी नीतियों के निर्माण के दौरान एक ज़रूरी विषय के रूप में जगह दिलाने में सफलता प्राप्त की। इनके दबाव के कारण वन तथा पर्यावरण को समवर्ती सूची में रखा गया। ये पर्यावरण आंदोलनों का ही प्रभाव है कि वर्तमान में पर्यावरण के लिये एक पृथक मंत्रालय है।
जैसे-जैसे पर्यावरणीय ह्रास में वृद्धि होती जा रही है, वैसे-वैसे विश्व में पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता भी बढ़ रही है तथा पयार्वरण जन-विमर्श का एक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है। पर्यावरण से जुड़ी शिकायतों को सुनने वाले NGT जैसे निकायों का गठन नीति-निर्माताओं की पर्यावरण के प्रति गंभीरता को प्रदर्शित करता है।
इन आंदोलनों से जुड़ा एक और पहलू है, जिसके कारण ये आंदोलन विकास प्रक्रियाओं में बाधक के रूप में नज़र आते हैं। कई बार इन आंदोलनों से जुड़े नेता या संगठन पर्यावरण संरक्षण के नाम पर अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये भी सरकारी नीतियों का विरोध करते हैं। यह प्रवृत्ति पर्यावरण से जुड़े वास्तविक आंदोलनों को कमज़ोर करती है। इन सबके बावज़ूद यह कहना गलत नहीं होगा की पर्यावरण से जुड़े आंदोलन आज सरकारी नीतियों को काफी हद तक प्रभावित करते हैं।