भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच चतुर्भुज सहयोग में भारत का मुद्दा, एक महान शक्ति के रूप में चीन के उदय से जुड़ा है। विश्लेषण करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- चतुर्भुज सहयोग के बारे में संक्षिप्त परिचय दें।
- भारत का इस व्यवस्था में शामिल होने के कारणों की पड़ताल करें।
- बताएँ कि कैसे यह सहयोग चीन को रोकने में कामयाब होगा?
- भारत के इस कदम से उत्पन्न प्रभाव का आकलन करें।
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चतुर्भुज सहयोग का विचार 2007 में पहली बार आया था। यह जापान द्वारा प्रस्तावित और अमेरिका द्वारा समर्पित संकल्पना है। प्रारंभ में भारत ने इस सहयोग में शामिल होने में अरुचि दिखाई थी, किंतु हाल ही में भारत ने इस सहयोग में शामिल होने की सहमति दे दी है।
- विदित हो कि हाल के दिनों में चीन अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक नीतियों से विश्व सहित समस्त एशिया में अपनी प्रभावशीलता को बढ़ाने में कामयाब रहा है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक दृष्टिकोण के अनुसार कोई भी देश किसी का शत्रु या मित्र नहीं होता है। लेकिन चीन की वन बेल्ट एंड वन रोड की नीति, मोतियों की माला की नीति और पाकिस्तान से व्यापक आर्थिक साझेदारी सहयोग (CEPA) से प्रभावित होकर भारत ने सैद्धांतिक मान्यताओं से अलग लक्षित एवं प्रक्रियागत निर्णय लेने का फैसला किया है।
- किंतु भारत को इस कदम के प्रभाव का आकलन करना होगा, क्योंकि किसी भी विकासशील देश के लिये, जो घरेलू अर्थव्यवस्था के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ आगे बढ़ना चाहता है, उसकी ज़रूरतें अक्सर अपने पड़ोसियों से टकराती हैं। ये शर्तें भारत के पर भी लागू होती हैं।
- इसके अतिरिक्त अमेरिका की मुख्य हस्तक्षेपवादी नीति भी चिंतनीय विषय है। अमेरिका के इस दृष्टिकोण को श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में लोकतांत्रिक मूल्यों और चिंताओं के संदर्भ में समझा जा सकता है। लेकिन चीन की व्यापारिक और सामरिक हितों के प्रति अंधश्रद्धा भी उतनी ही संवेदनशील है।
यह कदम निश्चित रूप से थिम्पू में चीन की राजनयिक मिशन की मांग के संदर्भ में भारत के मुकाबले को मज़बूत और दक्षिण एशियाई विकास परियोजनाओं के लिये आवश्यक वित्तीय विकल्प उपलब्ध कराएगा।