भारत में चुनावों के लिये राजकीय वित्त पोषण के पक्ष और विपक्ष में अपना मत प्रकट करें।
उत्तर :
चुनावों के लिये राजकोषीय वित्तीयन का तात्पर्य है-राजनीतिक दल या उम्मीदवारों द्वारा चुनाव में किये जाने वाले व्यय की आपूर्ति सरकारी खर्चे से किया जाना। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ चुनावों का आयोजन पारदर्शिता से संपन्न होता है और सत्ता का हस्तांतरण व्यवस्थित ढंग से होता है। इन अच्छाइयों व खूबियों के बावजूद हमें ‘धन और बल’ से जीतना बाकी है।
राजकीय वित्त के पक्ष में तर्क
- चुनाव में सार्वजनिक निधियन, धन प्रभाव से उत्पन्न होने वाले निहित स्वार्थ के प्रभाव को कम करेगा।
- संसद को कुलीन तंत्र के प्रभाव से बचाने में सहायक होगा।
- राजनीतिक असमानता जो अंततः आर्थिक असमानता में बदल जाती है, को रोका जा सकेगा।
- सभी दलों या उम्मीदवारों के लिये चुनाव लड़ने की चुनौती का स्तर समान होगा।
विपक्ष में तर्क
- जहाँ सरकार स्वयं ही बजट घाटे से संघर्ष कर रही है, ऐसे में चुनावों के लिये धन आवंटित करना एक जोखिम भरा कदम होगा।
- चुनावों के लिये सरकारी वित्तीयन बड़ी संख्या में लोगों को चुनाव लड़ने के लिये आकर्षित करेगा, जिससे सरकारी धन का दुरुपयोग हो सकता है।
- भारत में गरीबी, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दों पर सरकारी व्यय की कमी देखी गई है। ऐसे में चुनावों के लिये सरकारी निधियन उपलब्ध करना आधारहीन प्रतीत होता है।
- चुनाव आयोग भी राज्य द्वारा वित्त पोषण के पक्ष में नहीं है, क्योंकि उम्मीदवारों को प्रदान किये गए धन के अतिरिक्त खर्च को प्रतिबंधित करना एक चुनौती भरा कार्य होगा।