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प्रश्न :
हाल ही में निर्वाचन आयोग ने अपने ऊपर लगे आरोपों के संदर्भ में न्यायालय के समान अवमानना संबंधी शक्ति की मांग की है। निर्वाचन आयोग के अवमानना संबंधी शक्तियों के पक्ष एवं विपक्ष में मत प्रस्तुत करें।
27 Nov, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- निर्वाचन आयोग द्वारा अवमानना संबंधी शक्ति की मांग के वर्तमान संदर्भ का उल्लेख करें।
- निर्वाचन आयोग की इस मांग के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
- इस मांग के विपक्ष में तर्क प्रस्तुत करें।
- निष्कर्ष में सुझाव दें कि निर्वाचन आयोग को अन्य कौन-सी मांगों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की विश्वसनीयता को लेकर जारी विवाद के कारण भारतीय निर्वाचन आयोग ने केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय से न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 में तत्काल संशोधन की मांग की है। साथ ही आयोग पर निराधार आरोप लगाकर उसकी छवि खराब करने वाले लोगों को दंडित करने के लिये अपनी अवमानना के खिलाफ कार्रवाई करने के अधिकार की मांग भी की है। हालाँकि सरकार ने आयोग की इस मांग को अस्वीकृत कर दिया है।
निर्वाचन आयोग की इस मांग के पक्ष में तर्क
आयोग ने पड़ोसी देश पाकिस्तान के उस मामले को अपनी मांग के पक्ष में रखा, जिसमें पाकिस्तान के निर्वाचन आयोग ने इमरान खान के विरुद्ध अवमानना नोटिस जारी किया था। इसके अलावा केन्या, ईरान, लाइबेरिया, वेनेज़ुएला आदि में भी ऐसा प्रावधान मौजूद है।
निराधार आरोपों के कारण निर्वाचन आयोग जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण घटक की विश्वसनीयता संदिग्ध होने लगती है।हालाँकि पहले भी निर्वाचन आयोग ने इसी तरह की मांगें 1990 में चुनाव सुधारों से संबंधित दिनेश गोस्वामी रिपोर्ट के समय रखी थीं, जिन पर समिति की ओर से उत्तर नहीं दिया गया था।
विपक्ष में तर्क
- चुनाव जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले निर्वाचन आयोग द्वारा ही अपनी आलोचना का दमन करना लोकतंत्र की मूल भावना को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगा।
- अमेरिका और कनाडा जैसे विशाल लोकतांत्रिक देशों ने अपने निर्वाचन आयोगों को किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने समक्ष झूठा वक्तव्य देने या घोषणा करने के लिए उसका पंजीकरण समाप्त करने आदि जैसे व्यापक अधिकार दिये हैं, न कि अवमानना के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार।
- इससे भविष्य में सकारात्मक आलोचना का भी दमन किये जाने की संभावना रहेगी।
- न्यायालय द्वारा अपनी अवमानना के खिलाफ कार्रवाही का अधिकार ही विवादस्पद बना हुआ है।
- समय-समय पर यह मांग भी की जाती रही है कि अवमानना के इस कानून को ही समाप्त कर देना चाहिये, क्योंकि संविधान के तहत ‘बोलने की आज़ादी’ को तार्किक रूप से जिस सीमा तक मर्यादित किया गया है, यह कानून उससे कहीं ज़्यादा आगे जाकर इस आज़ादी को नियंत्रित या प्रतिबंधित सा कर देता है।
अवमानना पर कार्रवाही जैसा अधिकार मांगने की बजाय निर्वाचन आयोग को राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कराने, राजनीतिक दलों के चंदे में पारदर्शिता लाने, रिश्वत को संज्ञेय अपराध बनाने, पेड न्यूज़ से छुटकारा आदि जैसे चुनाव सुधार लागू कराने के प्रयास करने चाहिये।
चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में विश्व में अपने समकक्ष निकायों की तुलना में भारतीय निर्वाचन आयोग अपेक्षाकृत कमज़ोर निकाय है। आयोग को अपने समक्ष झूठा हलफनामा या चुनाव खर्च प्रस्तुत करने वालों को दंडित करने का कोई अधिकार नहीं है। इसलिये, भारतीय निर्वाचन आयोग को चुनाव संबंधी उल्लंघनों और पेड न्यूज़ पर अंकुश लगाने तथा राजनीतिक दलों का पंजीकरण करने और पंजीकरण समाप्त करने का अधिकार, चुनावी चंदे और पार्टी के वित्तीय मामलों की जाँच के अधिकार के लिये उपरोक्त सभी चुनाव संबंधी संबंधी मामलों के लिये जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन की मांग करनी चाहिये।
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