निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से आप क्या समझते हैं? परिसीमन के क्या उद्देश्य हैं? यह जन-प्रतिनिधित्व कानून को किस प्रकार से प्रभावित करता है?
उत्तर :
प्रतिनिधिमूलक व्यवस्था में किसी निर्वाचन क्षेत्र से एक राजनीतिक प्रतिनिधि को चुनकर लोकसभा या विधानसभा में भेजा जाता है। इस व्यवस्था में नियमित अंतराल पर निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्व्यस्थापन अनिवार्य होता है ताकि समय के साथ होने वाले जनसांख्यिकी बदलाव से प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र का दर्शन प्रभावित न हो। इस तरह निर्वाचन क्षेत्रों के लिये किये जाने वाले पुनर्व्यवस्थापन को ही परिसीमन कहा जाता है। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 82 के द्वारा प्रत्येक जनगणना के उपरांत निर्वाचन क्षेत्रों के लिये पुनः समायोजन की व्यवस्था की गई है।
परिसीमन के उद्देश्य:
- सभी मतदातों के लिये समान महत्त्व से मत डालने के अधिकार को सुनिश्चित करना अर्थात् देश भर में जनसंख्या के अनुपात निर्वाचन क्षेत्रों का विभाजन करना ताकि एक नागरिक एक वोट की मूल भावना सुरक्षित रहे।
- जनगणना के बाद अनुसूचित जाति एवं जनजाति की आबादी में हुए परिवर्तन के परिणामस्वरूप उनके लिये आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों के लिये पुनः कोके का निर्धारण करना।
- यह संवैधानिक आवश्यकता है, क्योंकि संविधान में यह कहा गया है कि प्रत्येक राज्य को लोकसभा में उसी अनुपात में सीटों का आवंटन किया जाएगा जिस मात्रा में वह देश की आबादी में योगदान करता है। राज्य के भीतर भी प्रत्येक ज़िले के लिये विधानसभा के सीटों के आवंटन में इसी नियम को आधार बनाया गया है।
उल्लेखनीय है कि परिसीमन आयोग द्वारा अधिसूचित परिसीमन आदेशों के ज़रिये जन-प्रतिनिधित्व कानूनों में कई तरह के परिवर्तन प्रतिबिंबित होते हैं।
- वर्ष 2008 में राष्ट्रपति के आदेश के उपरांत जब देश में परिसीमन प्रभावी हुआ तो जन-प्रतिनिधित्व कानून, 1950 की पहली अनुसूची और दूसरी अनुसूची में ज़रूरतों के अनुसार संशोधन कर परिसीमन की सहमति के साथ जन-प्रतिनिधित्व (संशोधन) कानून, 2008 बनाया गया।
- निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता सूची में परिवर्तन के माध्यम से।
- राज्यों में लोकसभा एवं विधानसभा सीटों की संख्या में परिवर्तन के द्वारा।