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प्रश्न :
जन्म और मृत्यु के समान विवाह के लिये अनिवार्य पंजीकरण बाल-विवाह, लैंगिक हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों के लिये एक प्रभावी औषधि साबित हो सकती है? चर्चा करें।
14 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- विवाह के लिये अनिवार्य पंजीकरण की संक्षिप्त पृठभूमि प्रस्तुत करें।
- विवाह से संबंधित समस्याओं की चर्चा करें।
- अनिवार्य पंजीकरण की उपयोगिता को बताएँ।
विधि आयोग ने जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 में विवाह के लिये पंजीकरण को अनिवार्य बनाने हेतु संशोधन का सुझाव दिया है। यदि भारत में विद्यमान सामाजिक बुराइयों पर गौर करें तो ये काफी हद तक विवाह से अंतर्संबंधित होती हैं। ऐसे में विधि आयोग का यह सुझाव काफी दूरदर्शी प्रतीत होता है। विवाह के लिये अनिवार्य पंजीकरण निम्नलिखित रूपों में सामाजिक बुराइयों को नियंत्रित करने में कारगर हो सकता है-
- भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज वाले देशों में महिलाओं को कमज़ोर समझा जाता है। ऐसे में कम उम्र में विवाह लड़कियों और महिलाओं के विरुद्ध शोषण का एक उपकरण बन जाता है।
- विश्व में सर्वाधिक बाल-वधुओं की संख्या भारत में पाई जाती है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में लगभग 47% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से पहले ही हो जाता है।
- एक से अधिक विवाह की प्रथा भी भारत में काफी संख्या में विद्यमान है। यद्यपि ये खुले रूप में नहीं होते है; लेकिन यह स्थिति महिला के अधिकारों को पूरी तरह से दरकिनार करती है।
- एक आँकड़े के मुताबिक 15-49 आयु वर्ग की महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन हिंसा का अधिक शिकार होना पड़ता है।
इस तरह विवाह के लिये अनिवार्य पंजीकरण के माध्यम से न केवल बाल-विवाह, बहु-विवाह और घरेलू हिंसा पर रोक लगाई जा सकती है बल्कि यह इन अपराधों में शामिल व्यक्तियों को दंड दिलाने की प्रक्रिया को सरल बनाएगा। इसके अतिरिक्त अनिवार्य पंजीकरण के माध्यम से मातृत्व मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और लैंगिक हिंसा जैसी अन्य बुराइयों को भी कम किया जा सकता है।
अतः स्पष्ट है कि विवाह के लिये अनिवार्य पंजीकरण सबला, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि कार्यक्रमों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य-5, यानि लैंगिक समानता को साधकर समावेशी भारत के निर्माण को बढ़ावा देगा।
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