- फ़िल्टर करें :
- राजव्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध
- सामाजिक न्याय
-
प्रश्न :
रोहिंग्या–संकट की चर्चा करें। इस संदर्भ में बांग्लादेश द्वारा यह कहा जा रहा है कि भारत को पुनः 1971 की तरह कदम बढ़ाते हुए इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाना चाहिये। बांग्लादेश की आकांक्षाओं के संदर्भ में टिप्पणी कीजिये।
19 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- रोहिंग्या संकट के बारे में बताएं।
- संबंधित मुद्दे कि धरणीयता पर तर्क सहित विचार करें।
- निष्कर्ष लिखें।
रोहिंग्या-संकट का तात्पर्य म्याँमार के रखाइन प्रांत में अल्पसंख्यक के रूप में निवास कर रहे रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न से है। अल्पसंख्यक तथा सांप्रदायिक रूप से अलग होने के कारण म्याँमार सरकार द्वारा इनकी नागरिकता छीन ली गई है और ये पहचान की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके अलावा ये हत्या तथा बलात्कार जैसी जघन्य अपराधों के शिकार भी हो रहे हैं। उत्पीड़न से होने वाले पलायन के कारण विभिन्न देशों में अप्रवासियों की तरह रहना भी रोहिंग्या संकट को बढ़ा रही है।
रखाइन प्रांत की सीमा से जुड़े होने के कारण बांग्लादेश उनके अवैध अप्रवासन की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हैं। इसके अलावा बांग्लादेश का रोहिंग्या मुसलमानों से भावनात्मक जुड़ाव भी है। बांग्लादेश के साथ भारत भी रोहिंग्या अप्रवासियों से प्रभावित है। इसी क्रम में बांग्लादेश द्वारा 1971 में भारत के सहयोग का जिक्र करते हुए भारत पर मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र में उठाने की बात की गई है। इस मुद्दे को निम्न रूप में देखा जा सकता है:- 1971 के समय मुद्दा लोकतंत्र के व्यापक उल्लंघन से जुड़ा था तथा अप्रवास की समस्या भी तुलनात्मक रुप से अत्यधिक थी।
- यहां नागरिकों पर सेना के व्यापक प्रयोग के स्पष्ट साक्ष्य थें, किंतु म्याँमार की नेता आंग सान सू की के द्वारा यहाँ यह आरोप लगाया गया है कि चरमपंथी उत्पीड़न की घटना को ज्यादा बढ़ा कर बता रहे हैं।
- इसके अलावा म्याँमार भारत का एक महत्वपूर्ण पड़ोसी राष्ट्र होने के साथ-साथ दक्षिण पूर्व एशिया का द्वार भी है। भारत के उत्तर-पूर्वी अलगाववाद को रोकने में इसका रणनीतिक महत्व भी है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र में म्याँमार का विरोध करने से भारत की महत्त्वकांक्षी कालादान परियोजना तथा भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना भी प्रभावित हो सकती है।
- चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में मेंबर का पक्ष लेते हुए प्रस्ताव का विरोध किया गया है। ऐसे में भारत द्वारा म्याँमार का विरोध करने से म्याँमार चीन के पक्ष में आ सकता है। इससे भी भारत के रणनीतिक हित प्रभावित होंगे।
वर्तमान समय में भारत द्वारा बांग्लादेश, म्याँमार और रोहिंग्या के लोकतांत्रिक प्रतिनिधियों के साथ मिलकर बातचीत के द्वारा एक साझा समाधान निकालने का प्रयास करना ज्यादा उचित है, ताकि मानव अधिकारों के साथ-साथ भारत के रणनीतिक हित भी सुरक्षित रहें।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print