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प्रश्न :
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन की 11वीं मंत्रिस्तरीय बैठक में महिला सशक्तीकरण के लिये लाए गए प्रावधान की मुख्य विशेषताओं पर विचार करें। भारत द्वारा इसके विरोध का निर्णय कितना उचित है विश्लेषण करें।
20 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- विश्व व्यापर संगठन द्वारा महिला सशक्तीकरण पर लाये गए प्रस्ताव का उल्लेख करें।
- भारत द्वारा विरोध के कारणों का उल्लेख करें।
- निष्कर्ष लिखें।
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन के द्वारा स्त्री सशक्तीकरण को बढ़ावा देते हुए लिंग समानता को व्यापार से जोड़ने की बात की गई। विश्व व्यापार संगठन के 119 सदस्यों द्वारा समर्थित इस प्रस्ताव की मुख्य बातों को निम्न रूप में देखा जा सकता है -
- विश्व की जनसंख्या में स्त्रियों की भागीदारी लगभग आधी है, किंतु वे विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में केवल 33% हिस्सा ही उत्पादित करती हैं। अतः सम्मेलन में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी बढ़ाने की बात की गई।
- आर्थिक क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति में व्यापक असमानता पर ध्यान देते हुए विभिन्न देशों में व्यापार में महिलाओं के लिये अवसर बढ़ाने पर बल दिया गया। ध्यातव्य है कि कुछ विकासशील देशों में स्त्री स्वामित्व वाले व्यापार की हिस्सेदारी मात्र 3% से 6% तक ही सीमित है।
- इसमें विभिन्न देशों के उन कानूनों तथा नियमों को समाप्त करने पर बल दिया गया जिससे महिलाओं की आर्थिक भागीदारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। डब्ल्यू.टी.ओ. के सर्वे के अनुसार विश्व में 155 से अधिक देशों में कम से कम एक कानून ऐसा है जिससे महिलाओं की आर्थिक भागीदारी कमजोर होती है।
वैश्विक स्तर पर क्रांतिकारी तथा सामाजिक समायोजन का उपकरण माने जाने वाले इस प्रस्ताव का भारत द्वारा निम्न आधार पर समर्थन नहीं किया गया।
- विश्व व्यापार संगठन द्वारा स्त्री सशक्तीकरण की आड़ में व्यापार संबंधी हितों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- भारत व्यापार में वृद्धि के लिये स्त्री का एक साधन के रूप में प्रयोग करने के पक्ष में नहीं है।
- इसके अलावा इस प्रावधान का प्रयोग विकसित देशों के हितों की प्राप्ति के लिए भी किया जा सकता है, क्योंकि उन देशों में स्त्रियों की भागीदारी अपेक्षाकृत अधिक है।
- इसके अलावा भागीदारी के नाम पर विकासशील देशों तथा पिछड़े देशों के निर्यात को भी प्रतिबंधित किया जा सकता है, जिससे उनके आर्थिक हित प्रभावित हो सकते हैं।
स्पष्ट है कि भारत महिलाओं के आर्थिक समावेशन के विरुद्ध नहीं बल्कि आर्थिक हितों की प्राप्ति के लिए महिलाओं का प्रयोग करने की नीति के विरुद्ध है।
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