बंधुआ मज़दूरी से आप क्या समझते हैं? भारत में इसकी विद्यमानता के कारणों एवं इसके उन्मूलन के लिये उठाए गए कदमों की चर्चा करें।
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- बंधुआ मज़दूरी के बारे में परिचय दें।
- भारत में इस समस्या के बने रहने के कारणों को बताएँ।
- सरकार द्वारा इसके उन्मूलन के लिये उठाए गए कदमों का उल्लेख करें।
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भारतीय समाज में व्याप्त विभिन्न सामाजिक समस्याओं में बंधुआ मज़दूरी एक प्रमुख समस्या है। आज भी यह समस्या भारत में औपनिवेशिक और सामंतवाद की झलक प्रस्तुत करती है। इस प्रकार की मज़दूरी में व्यक्ति निश्चित समय तक सेवाएँ देने के लिये बाध्य होता है। ऐसा वह साहूकारों या ज़मींदारों से लिये गए ऋण को चुकाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में भारत में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर हैं, इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता के शिकार हैं।
कारण:
- जैसा आंकड़ों से स्पष्ट है कि अधिकांश बंधुआ मज़दूर ऋण की समस्या से ग्रसित हैं, ऐसे में गरीबी सबसे प्रमुख समस्या उभर कर सामने आती है। इसके साथ रोज़गार न मिल पाना, भूमिहीनता, ऋण देने के लिये संस्थागत ढाँचे का न होना आदि ऐसे ही आर्थिक कारण हैं।
- भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सामाजिक-धार्मिक प्रथाओं का पालन करना बाध्यकारी होता है, भले ही उसकी आर्थिक-दशा कैसी भी हो। विवाह के समय दहेज़, मृत्यु के बाद श्राद्ध, जन्म के समय दावत और विभिन्न धार्मिक अवसरों पर होने वाले कर्मकांड आदि बाध्यकारी होते हैं, जिससे व्यय में अचानक वृद्धि होती है। इन परिस्थितियों ने गरीबी के साथ मिलकर बंधुआ मज़दूरी को जीवित रखा है।
- आज भी भारत में कुछ प्रभु जातियों द्वारा निचले तबके को दबाकर रखने की प्रवृति विद्यमान है। समाज में मौजूद कमज़ोर तबका अत्यचार के भय से मामूली भत्ते या मुफ्त में काम करने को बाध्य होता है।
- सरकार द्वारा बनाए गए कानून का कमज़ोर क्रियान्वयन भी बंधुआ मज़दूरी की जीवंतता के लिये उत्तरदायी है।
उन्मूलन के लिये उठाए गए कदम:
- संविधान में मूल अधिकारों के अंतर्गत अनुच्छेद 21 और 23 और सरकार द्वारा बंधुआ मज़दूरी व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 बनाए गए।
- उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार 1997 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी इस पर निगरानी व इस संबंध में न्यायालय को रिपोर्ट देने हेतु उत्तरदायी बनाया गया है।
- बंधुआ मज़दूर के पुनर्वास के लिये केंद्र सरकार द्वारा 2016 में ‘बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिये केन्द्रीय क्षेत्र योजना’ को नए तरीके से चलाया जा रहा है। इसके अंतर्गत वयस्क श्रमिकों के पुनर्वास हेतु 20,000 की राशि को बढ़ाकर 1 लाख कर दिया गया है।
उपर्युक्त कदमों का सही क्रियान्वयन निश्चित ही सकारात्मक परिणाम हो सकता है, किंतु सिविल सोसाइटी और NGO की भागीदारी के साथ श्रमिक संघों को सुदृढ़ करना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण हो सकता है।