पाँचवी अनुसूची
- पाँचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्र संबंधी प्रावधान हैं। ये प्रावधान मुख्यतः छठी अनुसूची में शामिल राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों की जनजातीया क्षेत्रों के लिये हैं।
- इसमें राज्यपाल राष्ट्रपति को संबंधित क्षेत्र के लिये प्रतिवेदन दे सकता है, किन्तु इनमें अंतिम शक्ति राष्ट्रपति में ही निहित है।
- ऐसे अनुसूचित क्षेत्रों के लिये जनजातीय सलाहकार परिषद का प्रावधान है। इसका निर्माण 20 से अधिक सदस्यों से मिलकर होगा, जिसके तीन चौथाई सदस्य उस राज्य की विधानसभा के अनुसूचित जातियों के प्रतिनिधि होंगे।
- जनजातीय सलाहकार परिषद की भूमिका परामर्शदात्री है।
- इन्हें न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त नहीं होती।
- इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में संसद और विधानमंडल का समुचित नियंत्रण रहता है।
- यह अपेक्षा कृत कम सहभागिता मूलक है।
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छठी अनुसूची
- छठी अनुसूची में असम, मेघालय, मिजो़रम तथा त्रिपुरा के जनजातीय क्षेत्रों के बारे में प्रावधान है।
- इसमें राज्यपाल के पास अपेक्षाकृत अधिक शक्ति है। वह जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त जि़ला अथवा स्वायत्त क्षेत्र के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है।
- इन क्षेत्रों के लिये जिला परिषद और क्षेत्रीय परिषद का प्रावधान है। जिला परिषद में अधिकतम 30 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 4 दस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं तथा अन्य सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- जनजातीय सलाहकार परिषद की तुलना में इनकी भूमिका प्रशासन में अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण होती है।
- इसके तहत स्वायत्त जिलों की जिला परिषद को ग्राम न्यायालय के गठन का अधिकार भी प्राप्त है।
- छठी अनुसूची के तहत शासित क्षेत्रों पर संसद एवं विधानमंडल का प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहता है।
- यह अधिक सहभागिता मूलक है।
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