गरीबी, निरक्षरता तथा जल की उपलब्धता में कमी खुले में शौच का एक बड़ा कारण माना जाता है, किंतु यह देखा गया है कि भारत की तुलना में इन क्षेत्रों में कमजोर तथा पिछड़े देशों में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या भारत से कम है। भारत में खुले में शौच करने वाले लोगों की संख्या अधिक होने के क्या कारण है। इस समस्या के समाधान के लिये सरकार द्वारा कैसी नीति अपनाई जानी चाहिये।चर्चा करें।
06 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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विश्व स्वास्थ संगठन तथा यूनिसेफ जैसे संगठनों के अनुसार ग्रामीण भारत में 50% से अधिक लोग खुले में शौच करते हैं जबकि भारत की तुलना में अधिक गरीब माने जाने वाले अफ्रीकी देशों में यह संख्या काफी कम ( 35%) है। उसी प्रकार पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे पिछड़े देशों के ग्रामीण क्षेत्र में खुले में शौच करने वालों की संख्या क्रमशः 25% तथा 5% है।
यह तथ्य बताते हैं कि भारत में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा तथा जल का अभाव खुले में शौच का प्रमुख कारण नहीं है। बल्कि भारत में यह समस्या यहाँ के लोगों की मान्यताओं, विश्वास, मूल्य, रूढियों, अस्पृश्यता, प्रदूषण तथा जाति संबंधी विचारधारा के कारण कहीं अधिक है।अपनी आदत तथा पारंपरिक रूढियों के कारण लोग बदलाव से डरते हैं और घरेलू लैट्रिन का प्रयोग नहीं करते।
घर के निकट लैट्रिन का होना प्रदूषण का कारण है इसके अलावा ग्रामों में लैट्रिन का प्रयोग मुख्यतः वृद्धों तथा विकलांगों के द्वारा किया जाना भी लोगों में इसके प्रयोग के प्रति हीनता की भावना भर देता है। मल की सफाई भी परंपरागत रुप से अस्पृश्य माने वाली जातियों का कार्य रहा है। इसे साफ करने की आवश्यकता के डर से भी लोग घरेलू लैट्रिन का प्रयोग नहीं करते। जहां तक खुले में शौच से महिला अस्मिता पर खतरे का प्रश्न है EPW के सर्वेक्षण में केवल 4.3% महिलाएँ ऐसी असुरक्षा का अनुभव करती है। अधिकांश महिलाएं जो अन्यथा सारे दिन घर पर रहती है, इसे भ्रमण का एक अवसर समझती है।
सरकार को इस समस्या के समाधान हेतु अवसंरचना निर्माण के साथ-साथ मानसिकता के बदलाव हेतु व्यवहारिक तथा प्रभावी उपाय अपनाना अपनाना चाहिए। समाज की प्रसिद्ध हस्तियों द्वारा स्वयं का मल साफ करने की घटना तथा नाटक, कहानी, खेल तथा रोल प्ले आदि के माध्यम से इनकी मानसिकता में बदलाव लाया जा सकता है। इसके अलावा बड़े-बड़े अभिनेताओं द्वारा प्रचार के द्वारा भी लोगों की मानसिकता को बदला जा सकता है। प्रेरक उपायों में विभिन्न गाँव जो खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं, को इनाम प्रदान करना भी एक महत्वपूर्ण कदम होगा। गांव में ऐसा माहौल बनाए जाने की आवश्यकता है कि लेट्रिन का प्रयोग करना कमजोर, विकलांग तथा महिला की विवशता के स्थान पर एक स्वस्थ्य जिम्मेदार नागरिक का सम्मान बढ़ाने वाला कदम समझा जाए।
खुले में शौच करना एक ऐसी प्रथा है जिससे करने वाले की तुलना में अन्य व्यक्ति भी प्रभावित होते हैं। गांव के बच्चे हैजा, जॉन्डिस तथा प्रदूषण से प्रभावित होते हैं ऐसे में पारिवारिक लगाव बच्चों की सुरक्षा का भाव तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को बढ़ाकर उन्हें ऐसा करने से रोका जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि गरीबी उन्मूलन तथा शौचालयों के निर्माण की आवश्यकता नहीं है पर इसकी तुलना में कहीं बल अधिक लोगों की मानसिकता के बदलाव पर होना चाहिए।