आईपीसी की धारा 377 पर प्रकाश डालें। क्या बदलती सामाजिक परिस्थितियों में इसमें परिवर्तन की आवश्यकता है?
11 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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IPC की धारा 377 का संबंध अप्राकृतिक शारीरिक संबंधों से है। इसके अनुसार यदि दो लोग आपसी सहमति अथवा असहमति से आपस में अप्राकृतिक संबंध बनाते हैं और दोषी करार दिए जाते हैं तो उनको 10 वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सजा़ हो सकती है। अधिनियम में इस अपराध को संज्ञेय तथा गैर-जमानती अपराध माना गया है।
यद्यपि व्यक्ति की चयन की स्वतंत्रता को महत्त्व देते हुए 2009 में हाईकोर्ट ने आपसी सहमति से एकांत में बनाए जाने वाले समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करने का निर्णय दिया था। किंतु 2013 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिकता की स्थिति में उम्रकैद के प्रावधान को पुनः बहाल करने का फैसला दिया गया।
वर्तमान समय में भौतिकता के प्रभाव से जहाँ संबंधों की स्थिति जटिल हुई है, वहीं चयन की स्वतंत्रता की मांग भी बढ़ी है। आज लोग अपनी स्वतंत्रता के मामले में सजग है। ऐसे में निम्नलिखित आधारों पर इस कानून पर विचार किया जा सकता है-
किंतु इस कानून पर विचार करते समय इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिये कि आपराधिक कृत्यों से इन्हें बाहर किये जाने से इनका दुरुपयोग ना हो। उदाहरण के लिये ऐसा किये जाने से समलैंगिकता के आधार पर बलात्कार तथा सार्वजनिक स्थानों पर अश्लील माने जाने वाले कृत्यों की अभिव्यक्ति की घटनाएँ बढ़ सकती है। इसके अलावा समलैंगिक वर्ग के लोग अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करने के लिये आक्रमक उपाय भी अपना सकते हैं।
स्पष्ट है कि चयन की स्वतंत्रता और समाज के हितों के मध्य संतुलन साधते हुए इस कानून पर विचार किया जाना आज की आवश्यकता है।