अनुच्छेद 13 न केवल भारतीय संविधान की सर्वोच्चता का दावा करता है, अपितु न्यायिक समीक्षा के लिये भी प्रावधान करता है। संविधान के अनुच्छेद 13 का अर्थ और उसके दायरे की चर्चा कीजिये।
14 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थासंविधान, अनुच्छेद 13 के माध्यम से ही ऐसे किसी कानून बनाने से संसद और राज्य विधानसभाओं पर प्रतिबंध लगाता है जो नागरिको को प्रदत्त मौलिक अधिकारों में कटौती करता हो या उनसे वंचित करता हो। अनुच्छेद 13 के प्रावधान मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु हैं और ऐसे किसी भी कानून को शून्य घोषित करता है जो मौलिक अधिकारों की अवमानना करते हों या इनके साथ असंगत हों।
अनुच्छेद 13 न्यायिक समीक्षा के लिये एक संवैधानिक आधार प्रदान करता है क्योंकि यह उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को यह अधिकार देता है कि वे संविधान-पूर्व कानूनों की व्याख्या करें और यह तय करने का अधिकार देता है कि ऐसे कानून वर्तमान संविधान के मूल्यों और सिद्धांतों के साथ सुसंगत है या नहीं। अगर प्रावधान वर्तमान कानूनी ढाँचे के साथ आंशिक या पूरी तरह से विरोधाभासी हैं तो उन्हें अप्रभावी समझा जाएगा जब तक की उनमे संशोधन न किया जाए। इसी प्रकार, संविधान लागू होने के बाद कानूनों को उनकी अनुकूलता को साबित करना होगा कि वे विरोध में नही हैं अन्यथा उन्हें भी शून्य माना जाएगा।
अनुच्छेद 13 के तहत, ‘विधि’ का अर्थ है कोई भी अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, कस्टम या व्यवहार जिसे कानून की शक्ति प्राप्त हो इसमें शामिल हैं। अनुच्छेद 13 के द्वारा न्यायिक समीक्षा के दायरे का विस्तार किया गया है। भारतीय न्यायपालिका के पास सिर्फ प्रशासनिक कार्रवाई में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये ही नहीं पहुँचा जा सकता है अपितु विधायी सक्षमता के सवाल पर भी मदद ली जा सकती है जहाँ मुख्य रूप से केंद्र-राज्य संबंधों के संदर्भ में प्राधिकार का प्रश्न उठता है।