"कार्यपालिका की सक्रियता, संवैधानिक व्यवस्था के नियंत्रण एवं संतुलन को बाधित करती है।" अध्यादेशों के अत्यधिक एवं मनमाने ढंग से उपयोग के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये।
25 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा:
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भारतीय संविधान ने कानून बनाने की शक्ति विधायिका को, इसके क्रियान्वयन की ज़िम्मेदारी कार्यपालिका को तथा इसके निर्वचन की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका को सौंपी है। प्रत्येक अंग एक-दूसरे पर नियंत्रण एवं संतुलन बनाए रखता है। संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत किसी असामान्य परिस्थिति में कार्यपालिका को कानून बनाने की सीमित शक्ति दी गई है।
आज़ादी के बाद से अंधाधुंध तरीके से अध्यादेशों का इस्तेमाल किया गया। यह कार्यपालिका द्वारा विधायिका के प्रति उपेक्षा को इंगित करता है। पहली लोकसभा में सरकार ने दोनों सदनों में बहुमत होने के बावजूद अनावश्यक जल्दबाजी से करीब 40 अध्यादेशों को प्रख्यापित किया था। इसी तरह कुछ राज्यों ने भी यही रास्ते अपनाए थे। बिहार सरकार ने 1967-1981 के दौरान करीब 256 अध्यादेश प्रख्यापित किये थे लेकिन उनमें से कुछ ही सदन में पारित हुए थे।
अध्यादेश का प्रयोग आमतौर पर गठबंधन सरकारों में राजनीतिक दलों के बीच मतभेद को जन्म देता है। पिछले दशक से अध्यादेश का उपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यूपीए -2 सरकार के एक वर्ष (2013) में 11 अध्यादेश प्रख्यापित किये गए थे। वर्तमान राजग सरकार द्वारा पिछले 15 महीनों में लगभग 10 अध्यादेश प्रख्यापित किये गए हैं और भूमि बिल अध्यादेश तीन बार प्रख्यापित हुआ है। यह विधायिका पर कार्यकारी हस्तक्षेप प्रदर्शित करता है।
कानून बनाना विधायिका का विशेष क्षेत्र है, लेकिन तात्कालिक स्थितियों से निपटने के लिये संवैधानिक कार्यकारी अधिकार दिये गये हैं। ये शक्तियाँ कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन को बिगाड़ देती हैं और ये शक्तियों के विभाजन की अवधारणा के ख़िलाफ जाती हैं। इसलिये अपरिहार्य परिस्थितियों में तात्कालिक आवश्यकता को पूरा करने के लिये ही इस शक्ति का उपयोग करना चाहिये।