राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) की स्थापना किन उद्देश्यों को लेकर की गई थी? क्या आपको लगता है कि इसकी स्वायत्ता प्रभावित हो रही है?
उत्तर :
उत्तर की रूपरेखा:
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण क्या है?
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य
- इसकी स्वायत्तता को प्रभावित करने वाले कारक
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 323-B संसद को श्रम विवाद, पर्यावरण इत्यादि के संबंध में अधिकरण (Tribunal) बनाने के लिये विधि निर्माण की शक्ति प्रदान करता है। इसी के अनुसार पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण कानून, 2010 के माध्यम से NGT की स्थापना की गई है। इसके अन्य प्रमुख उद्देश्य हैं-
- पर्यावरण से संबंधित मामलों का प्रभावी एवं शीघ्र निपटारा।
- पर्यावरण कानून को लागू कराना, पर्यावरणीय अधिकारों का संरक्षण और अंततः पर्यावरण का संरक्षण।
- अपने गठन के बाद से ही NGT ने पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण निर्णय भी दिये हैं, जैसे-
► गैर-कानूनी रेत खनन के विरुद्ध दिये गए आदेश।
► दिल्ली में डीजल चालित वाहनों का नियमन एवं प्रतिबंध।
► फसल जलाने से हुए प्रदूषण से निपटने संबंधी उपाय।
► गंगा नदी प्रदूषण से संबंधित निर्णय इत्यादि।
हालाँकि इन प्रयासों के बावजूद कुछ हाल की गतिविधियाँ इस कानून की स्वायत्तता को प्रभावित कर रही हैं-
- हाल के वित्त अधिनियम, 2017 में NGT सहित सभी ट्रिब्यूनल के सदस्यों के लिये शर्तें और सेवा के नियमों में बदलाव लाने के प्रावधान शामिल किये गए हैं। इसके अनुसार सदस्यों का चुनाव सरकार द्वारा किया जाएगा, सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा नहीं।
- इसके प्रावधानों को लागू कराने के लिये मूल कानून (Parent Act) में स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
- गंगा नदी प्रदूषण तथा यमुना से संबंधित इनके द्वारा दिये गए बार-बार के आदेश भी निष्प्रभावी ही रहे।
निष्कर्षतः कह सकते हैं कि NGT ने पर्यावरणीय संरक्षण तथा सुरक्षा के संदर्भ में एक उम्मीद की किरण के रूप में कार्य किया है। अतः सरकार द्वारा कोई ऐसा कदम नहीं उठाया जाना चाहिये कि इसकी स्वायत्तता प्रभावित हो।