भौगोलिक रूप से दक्षिण चीन सागर में अवस्थित न होने के बावजूद भारत शक्ति-संतुलन में एक अहम शक्ति के रूप में पहचान बनाने के उद्देश्य से दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है क्योंकि भारत हिंद महासागर में चीन की उपस्थिति को अवरुद्ध नहीं कर सकता परन्तु चीन के समीप दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर उसे जवाब दे सकता है। टिप्पणी कीजिये।
31 Jan, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
उत्तर की रूपरेखा:
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भारत के सामरिक हितों तथा भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका की दृष्टि से दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र का रणनीतिक महत्त्व है। अभी तक भारत पारंपरिक रूप से दक्षिण चीन सागर में समुद्री विवादों जैसे मुद्दों पर प्रत्यक्ष टिप्पणी करने से बचता रहा है, इसके स्थान पर भारत नौवहन की आज़ादी की ज़रूरत पर बल देता रहा है।
हालाँकि, भारत अब इन मुद्दों को लेकर सजग दिख रहा है। अब भारत ने अपने ‘पूर्व की ओर देखो नीति’ को ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ में बदल दिया है और दक्षिण चीन सागर विवाद को हल करने की आवश्यकता पर प्रत्यक्ष टिप्पणी की है तथा प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र और विशेष रूप से समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिये प्रमुख क्षेत्रीय देशों के साथ बातचीत के लिये अमेरिका के साथ एक संयुक्त सामरिक दृष्टि पर हस्ताक्षर किया है।
पूर्व के साथ व्यापार और सामरिक संबंधों को मज़बूत करने की दृष्टि से भारत दक्षिण चीन सागर को रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मानता है तथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये इस क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से एक विश्वसनीय शक्ति के रूप में पहचान बनाना चाहता है।भारत और चीन में हमेशा अपने देश की सीमाओं को लेकर विवाद रहा है परन्तु अब समुद्री क्षेत्रों में भी दोनों के सामरिक हित अभिसरित हो रहे हैं। हिंद महासागर में चीन की उपस्थिति अब संभावना से परे एक वास्तविकता बन चुकी है। भारत के लिये अब चुनौती इस क्षेत्र में अपने सामरिक हितों को सुरक्षित करते हुए विकास के प्रबंधन की है।
वास्तव में, बीजिंग ने हाल ही में भारत को वियतनाम के साथ दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस की खोज परियोजनाओं पर सहयोग करने को लेकर चेतावनी दी है, इसके वावजूद चीन पाकिस्तान के साथ अपने स्वयं के आर्थिक गलियारे का बचाव करता रहा है।
इसलिये, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षाको लेकर भारत का नया रूप शायद ज़रूरत पड़ने पर अपने कठोर गुटनिरपेक्षता नीति से परे जाने की इच्छा का परिचायक है। चीन के उदय और हिंद महासागर में इसके बढ़ते प्रभाव को भारत महसूस कर रहा है तथा इस दिशा में भारत-प्रशांत क्षेत्र की उभरती हुई शक्तियों के साथ तालमेल बनाना चाहता है ताकि इस क्षेत्र की सुरेखा नीतियों का झुकाव अपनी ओर कर सके।