प्रायः सामाजिक समस्याओं के निराकरण में प्रशासन को सहयोग देने की अनिच्छुक जनता को एक लोकसेवक अपने किन सद्गुणों से लोक-कल्याण की योजनाओं में भागीदार बना सकता है? उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये।
31 Mar, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नभारत में सामान्यत: जनसाधारण की सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रशासन के साथ भागीदारी करने की रुचि का अभाव पाया जाता है। जनता के मन में यह अवधारणा पाई जाती है कि जो जिम्मेदारी सरकार या प्रशासन की है, उसमें हम क्यों सहयोग करें। परन्तु, यह तो तय है कि बिना जनता की भागीदारी के लोक-कल्याणकारी योजनाओं में पूर्ण सफलता या लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है। उदाहरण के तौर पर यदि हम माननीय प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को ही लें तो जब तक भारत की जनता अपने आस-पास की गंदगी को दूर नहीं करेगी और कूड़ा-कचरा फैलाना या खुले में शौच जाना बंद नहीं करेगी, तब तक ‘स्वच्छ भारत’ के लक्ष्य की केवल सरकारी मशीनरी से प्राप्ति असंभव ही कही जाएगी।
एक लोकसेवक अपने कार्य के प्रति सत्यनिष्ठा, दायित्वों के प्रति ईमानदारी, जनसेवा के प्रति अपने समर्पण भाव, संवेदना जैसे सद्गुणों तथा ‘अनुनयन’ जैसी योग्यता के सहारे जनता को लोक-कल्याण की योजनाओं में भागीदार बना सकता है। जब कोई लोकसेवक सत्यनिष्ठा से अपना कार्य करता है तो उसे जनता का विश्वास प्राप्त हो जाता है। ऐसा विश्वसनीय लोकसेवक जब संवेदना से अभिप्रेरित हो वंचितों एवं पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिये समर्पण भाव से ईमानदार कोशिश करता है तो उसे सामाजिक परिवर्तन व लोक कल्याण की योजनाओं को लागू करने में जनता का सक्रिय सहयोग मिलता है। उदाहरण के तौर पर इसे मणिपुर के एक युवा आई.ए.एस. अधिकारी आर्मस्ट्रांग पामे की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा का परिणाम ही कहेंगे कि जब आर्मस्ट्रांग पामे ने बिना सरकारी सहायता के लोगों की सुविधा के लिये मणिपुर को असम और नागालैण्ड से जोड़ने के लिये 100 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की ठानी तो उनकी सहायता के लिये स्वयंसेवकों एवं दानकर्त्ताओं की कतारें खड़ी हो गई और जनसाधारण के सहयोग से उन्होंने अपने लक्ष्य को प्राप्त भी किया।
दरअसल ब्रिटिश शासन के दौर से ही जनता का प्रशासन से विलगाव रहा है और इस अभिवृत्ति को बदलने में एक लोकसेवक को सद्गुणों के साथ-साथ अपनी अनुनयन की योग्यता का भी अधिकतम उपयोग करना होगा।