पितृसत्तात्मक अभिवृत्ति वर्तमान में परिवार रूपी संस्था को गहरी क्षति पहुँचा रही है। अपनी सहमति/असहमति को तर्क-सहित स्पष्ट करें।
03 Apr, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नऐसी सामाजिक व्यवस्था जिसमें जीवन के हर क्षेत्र के संबंध में निर्णय लेने का एकमात्र अधिकार पुरुषों को प्राप्त होता है तथा खान-पान, पहनावा, शिक्षा, रोज़गार, विवाह, संपत्ति आदि से संबंधित निर्णय पुरुष की सहमति पर निर्भर होते हैं, पितृसत्तात्मक व्यवस्था कहलाती है। ऐसी व्यवस्था में परिवार के अंदर पिता/पति या अन्य पुरुष महिलाओं एवं बच्चों पर अधिकार जमाते हैं। धर्म, समाज और रूढ़िवादी परम्पराएँ इस व्यवस्था को अधिक ताकतवर बनाती हैं। ऐसी सामाजिक व्यवस्था में ही पितृसत्तात्मक अभिवृत्ति का विकास होता है।
भारतीय समाज सदियों से पितृसत्तात्मक रहा है। परंतु, आधुनिक शिक्षा, नारीवादी आंदोलनों एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवियों की अगुवाई में ‘नारी-सशक्तीकरण’ की धारा में अब यह व्यवस्था दरकने लगी है। निश्चित तौर पर पितृसत्तात्मक समाज में महिलाओं के अधिकारों को दोयम दर्जे का माना जाता है, लेकिन अब शिक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर महिलाएँ जब परिवार एवं समाज में बराबरी का दावा करने लगी हैं तो पुरुष वर्चस्व के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है।
परिवार के स्तर पर पितृसत्तात्मक अभिवृत्ति जहाँ पुरुषों के अहम् को बढ़ावा देती है वहीं महिलाओं के बराबरी के अधिकार को नकारती भी है। क्योंकि, वर्तमान में कानून महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है तथा अब कानूनों एवं संविधान के भरोसे महिला अपने परिवार में बराबरी का अधिकार माँग रही है जिससे तनाव और टकराव उस स्तर पर पहुँचने लगा है कि परिवार रूपी संस्था कमजोर होने लगी है।
यह सत्य है कि कोई भी व्यवस्था सदैव एक समान प्रासंगिक नहीं रहती, उसमें समय के साथ बदलाव लाना जरूरी होता है। प्राचीन एवं मध्यकाल के युद्ध-आछन्न युग ने पितृसत्तात्मक सत्ता की नींव रखी थी, लेकिन आज समय की माँग है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को भी पुरुषों के समान अवसर व सम्मान दिया जाए। इससे समाज में तनाव तो कम होगा ही ‘परिवार रूपी संस्था’ भी मजबूत ही होगी।