सरकारी तथा निजी संस्थानों में नैतिक दुविधाओं को एक कुशल और प्रभावी प्रशासन के मार्ग में एक बड़ा अवरोध समझा जाता है। इसी आलोक में ‘नैतिक दुविधा’ को परिभाषित करते हुए सरकारी संस्थाओं में कार्यरत लोगों के समक्ष प्रायः उपस्थित होने वाली नैतिक दुविधाओं का उल्लेख कीजिये।
05 May, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नप्रायः दुविधा उस स्थिति को कहते हैं जब किसी व्यक्ति के पास दो या अधिक विकल्प हों और विकल्प एक-दूसरे से पूर्णतः अलग हों अर्थात् उन्हें साथ-साथ चुना न जा सकता हो परंतु किसी एक विकल्प को चुनना अनिवार्य हो अर्थात् निर्णय को टाला न जा सकता हो और सारे विकल्प ऐसे हों कि किसी को भी चुनकर पूर्ण संतुष्टि मिलना संभव न हो। इस प्रकार, एक नैतिक दुविधा के मूल घटक निम्नवत् हैंः
सरकारी संस्थाओं में कार्यरत लोगों के समक्ष प्रायः उपस्थित होने वाली नैतिक दुविधाएँः
इस प्रकार की नैतिक दुविधाएँ एक कुशल एवं प्रभावी प्रशासन में अवरोध की तरह प्रस्तुत हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में एक कर्मचारी को विधि, नियमों, विनियमों एवं अंतरात्मा के मार्गदर्शन में अपनी दुविधाओं का निराकरण करने का प्रयास करना चाहिये।