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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘नैतिकता के तत्त्व समाज में कूट-कूटकर भरे हुए हैं, लेकिन उनका उद्गार समय और परिस्थिति के अधीन हो गया है, जिसे बदला जाना चाहिये ताकि एक बेहतर, सुंदर एवं विकसित समाज का निर्माण हो सके।’ विवेचना कीजिये

    11 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    नैतिकता अनिवार्य रूप से एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य समाज का हित होता है। नैतिकता की यह मांग हैं कि व्यक्ति अपने निजी हित के स्थान पर समाज के कल्याण को अधिक महत्त्व दे परंतु यह एक ऐच्छिक कार्यविधि है जिसकी अपेक्षा तो समाज करता है परंतु क्रियान्वयन व्यक्ति विशेष के स्वविवेक पर निर्भर होता है। ऐसी स्थितियाँ घटित होती रहती है जहाँ कोई कृत्य किसी व्यक्ति को बुरा लगे और किसी अन्य को उस कृत्य से कोई फर्क भी न पड़े। यथा-कोई अंधा  व्यक्ति सड़क पार करना चाह रहा है परंतु उसके आसपास गुजरने वाले उसकी कोई सहायता नहीं कर रहे हैं क्योंकि संभव है उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। आप एक बहुमंजिला इमारत में बैठे दूर से यह देखकर दुखी हो रहे हैं और जरूरी मीटिंग के चलते उस अंधे व्यक्ति की सहायता के लिये नहीं जा पा रहे हैं।

    कई बार व्यक्ति के मानसिक स्तर के आधार पर नीतिशास्त्रीय मानदंडों की व्याख्या की जाती है। हो सकता है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अधिक नैतिक हो लेकिन किन्हीं विशेष परिस्थितियों में उनकी नैतिकता का लोप हो गया हो, जैसे-रेगिस्तानी क्षेत्र में कई दिनों से भूखे-प्यासे एक संत को अचानक जल एवं भोजन मिल जाए, तब यदि किसी अन्य जरूरतमंद को देने के अपने सामान्य आचरण से अलग यदि वह स्वयं ही जल एवं भोजन ग्रहण कर लेता है, तो ऐसा नहीं है कि उसकी नैतिकता नष्ट हो गई है। अपितु यह कहा जाएगा कि परिस्थिति विशेष में उसकी नैतिकता का लोप हुआ है। व्यक्ति में नैतिकता की उपस्थिति समय अनुसार भी बदलती है। जो महिला घर के काम में बड़ों का बिल्कुल हाथ नहीं बँटाती, वही महिला किसी सत्संग परिसर में मन लगाकर बुजुर्गों की सेवा करती है और उसकी नैतिकता वहाँ उजागर होने लगती है।

    जब व्यक्ति को किसी से मदद लेनी होती है तो वही नैतिकता दर्शन के रूप में दृष्टिगोचर होती है, लेकिन जब किसी और को मदद देनी होती है तब उस नैतिकता का लोप हो जाता है। जैसे-भरी बस में जब किसी युवा लड़की को सीट चाहिये होती है तब वह महिला होने की ‘नैतिक दुहाई’ के सहारे पुरुषों से सीट ले लेती हैं परंतु यदि कुछ समय बाद कोई वृद्ध महिला आकर उस युवा लड़की के पास खड़ी हो जाती है तब उस लड़की की नैतिकता समाप्त हो जाती है, वह कोशिश करती है कि उसे सीट न देनी पड़े। कुल मिलाकर यह कहना तर्कसंगत है कि वर्तमान में नैतिकता का उद्गार समय और परिस्थिति के अधीन हो गया है, जो कि नहीं होना चाहिये। जनसाधारण को समझना होगा कि नैतिकता एक साधन है (न कि स्वतः साध्य) जिसका उद्देश्य अंततः व्यक्ति और समाज का कल्याण ही होता है।

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