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प्रश्न :
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख करें। साथ ही, लोकपाल की नियुक्ति के मार्ग में आ रही बाधाओं के संदर्भ में अपने विचार प्रकट करें।
13 May, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
भारत के राष्ट्रपति द्वारा लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013 पर 1 जनवरी, 2014 को हस्ताक्षर करते ही यह विधेयक ‘अधिनियम’ बन गया। इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- इसमें केंद्र स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त का प्रावधान किया गया है।
- लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 50% सदस्य न्यायिक पृष्ठभूमि से होने चाहिए।
- लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों का चयन एक ‘चयन समिति’ के माध्यम से किया जाएगा जिसमें भारत के प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा के विपक्ष के नेता, भारत के प्रमुख न्यायधीश या मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश शामिल होगा। एक अन्य सदस्य कोई प्रख्यात विधिवेत्ता होगा जिसे इन चार सदस्यों की सिफारिश पर राष्ट्रपति नामित करेंगे।
- लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में लोकसेवक की सभी श्रेणियाँ होंगी।
- कुछ सुरक्षा उपायों के साथ प्रधानमंत्री को भी इस अधिनियम के दायरे में लाया गया है।
- अधिनियम के अंतर्गत ईमानदार लोकसेवकों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
- अधिनियम में भ्रष्ट तरीकों से अर्जित की गई संपत्ति को जब्त करने का भी प्रावधान है चाहे अभियोजन का मामला लंबित ही क्यों न हो।
- अधिनियम में प्रारंभिक जाँच और ट्रायल के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की गई है। ट्रायल के लिए विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है।
इस अधिनियम के वर्ष 2014 में लागू हो जाने के बावजूद आज तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है। लोकपाल के अभाव में यह अधिनियम क्रियान्वित नहीं हो पा रहा है। एक गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज’ ने सर्वोच्च न्यायालय में पिटीशन लगाई कि सरकार जानबूझकर लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर रही है। नवम्बर, 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि लोकपाल कानून को एक ‘मृत पत्र (dead letter)’ नहीं बनने दिया जा सकता।
लोकपाल की नियुक्ति न हो पाने के संदर्भ में सरकार का अपना एक तर्क है। सरकार अनुसार लोकपाल के चुनाव के लिए जो चयन-समिति होती है, उसमें एक सदस्य ‘लोकसभा में विपक्ष का नेता’ होता है। परंतु 16वीं लोकसभा में किसी भी विपक्षी पार्टी के पास कुल लोकसभा सदस्यों की 10 प्रतिशत या अधिक सदस्य संख्या नहीं हैं, जो किसी पार्टी के नेता को ‘विपक्ष का नेता’ का दर्जा दिलाने की पूर्व शर्त होती है।
अतः बिना ‘विपक्ष के नेता’ के सरकार लोकपाल का चुनाव कैसे करे? अब सरकार अधिनियम में ‘विपक्ष के नेता’ की परिभाषा में संशोधन का प्रस्ताव लाई है जो अभी संसद में पारित नहीं हो पाया है, जिसके अनुसार विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को ‘विपक्ष के नेता’ मान लिया जाएगा।
मेरे विचार से सरकार को शीघ्रता से यह संशोधन पारित करवाना चाहिए ताकि एक सक्षम और सशक्त लोकपाल की
प्रणाली शुरू हो क्योंकि वर्तमान सरकार भ्रष्टाचार का विरोध तथा पारदर्शिता लाने का आह्वान करते हुए सत्ता में आई थी। अब अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने तथा भ्रष्टाचार पर अकुंश लगाने के लिए लोकपाल की नियुक्ति शीघ्रातिशीघ्र करना समय की मांग है।
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