यदि लोकतंत्र में किसी व्यक्ति को कोई कानून अपने व्यक्तिगत हितों के विरूद्ध प्रतीत हो रहा है तो आपके विचार से उसे क्या करना चाहिये? उदाहरण सहित स्पष्ट करें।
उत्तर :
एक लोकतांत्रिक-प्रणाली में कानून के निर्माण के दौरान मुख्यतः निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखा जाता है-
- उस कानून का पालन सभी के लिये संभव हो, किसी के लिये असंभव न हो।
- वह कानून बनाने की शक्ति रखने वाली संस्था द्वारा उचित प्रक्रिया के अनुसार बनाया जाए।
- वह सामान्य हित के पक्ष में होना चाहिये, किसी विशेष या वर्ग विरोध या समूह विशेष के हित में नहीं हो।
- वह जनता के सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के विरूद्ध न हो और यदि हो तो उसे पारित करने से पहले समाज में व्यापक बहस की जाए।
ऐसी स्थिति में यदि कभी किसी व्यक्ति को प्रतीत हो कि कोई कानून और उसके व्यक्तिगत हितों का विरोध है, तो उसे निम्नलिखित तर्कों पर ध्यान देना चाहिये-
- सर्वप्रथम उसे व्यक्तिगत हितों की परिभाषा ठीक करनी चाहिये क्योंकि संभव है इस संबंध में उसकी समझ गलत हो। जैसेः खाली सड़क पर खुद की कार को एक निर्धारित गति-सीमा से अधिक गति से न चलाने देने का कानून।
- लोकतंत्र में कानून जनता के प्रतिनिधि बनाते हैं, यानी अप्रत्यक्ष तौर पर वह स्वयं कानून निर्माता है।
- इतनी बड़ी जनसंख्या में जहाँ विभिन्न धर्म, नस्ल, वर्ग, क्षेत्र इत्यादि हों, कोई भी कानून सभी व्यक्तियों को साथ-साथ लाभ नहीं पहुँचा सकता, इसलिये कानून यदि व्यक्ति स्वयं भी बनाएगा तो उस पर भी सबकी सहमति नहीं होगी।
- कई ऐसे कानून भी हैं जिनसे उसे लाभ होता है परंतु औरों को नुकसान। जिस प्रकार बाकी लोग उन कानूनों को स्वीकार करके अपनी लोकतांत्रिक भूमिका निभाते हैं, वैसे ही मेरी भी जिम्मेदारी बनती है। यथा- जैन धर्मावलंबियों के 8 दिन तक चलने वाले पर्यूषण पर्व के दौरान कुछ राज्य सरकारें माँस की बिक्री पर रोक लगा देती हैं, परंतु अन्य धर्मों के माँस व्यापारी उसका कदाचित् ही विरोध करते हैं।
निष्कर्षतः व्यक्ति को समझना चाहिये कि कानून का शासन अपने आप में सभ्य समाज की शर्त है, यदि वह इसे नहीं मानता है तो उसे कोई नैतिक हक नहीं कि वह दूसरों से यह अपेक्षा रखे कि वे सब कानून मानेंगे। यदि कानून का शासन खत्म होता है तो सबको नुकसान होता है।