नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से आपका क्या तात्पर्य है? विशिष्ट उदाहरणों के साथ सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से उत्पन्न समस्याओं का उल्लेख करें।
01 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नविभिन्न संस्कृतियों में कई प्रकार की परम्पराएं, प्रथाएँ और सामाजिक नियम होते हैं, जिनको नैतिक धरातल पर उचित ठहराया जाता है। परन्तु, नैतिकता के ऐसे निश्चित मानक तय करना संभव नहीं होता जो सभी संस्कृतियों के मूल्यांकन के लिये एक सामान आधार प्रस्तुत कर सके। प्रत्येक संस्कृति की नैतिकता की परिभाषा उसके उद्देश्यों, परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुरूप तय होती है। जैसे- ‘एस्किमो’ जनजाति बर्फीले क्षेत्र में रहती है, वहाँ वनस्पतियों का अभाव होता है, इसलिये इस जनजाति के लोगों में मांसाहार करना नैतिक समझा जाता है, जबकि जैन समुदाय में मांस भक्षण को घोर अनैतिक कृत्य माना जाता है।
अतः प्रत्येक संस्कृति के अपने ‘नैतिक सत्य’ हैं, जो दूसरी संस्कृति के नैतिक सत्यों से भिन्न भी हो सकते हैं। यही सांस्कृतिक सापेक्षतावाद है, जो निर्दिष्ट करता है कि समाज में नैतिक सत्य हो सकते हैं किन्तु वे उसी संस्कृति से सापेक्ष हैं और उसी के लिये वैध हैं।
सांस्कृतिक सापेक्षतावाद से उत्पन्न होने वाली समस्याएंः
अलग-अलग संस्कृतियों में सामाजिक नियमों व नैतिक नियमों की विविधता होना स्वाभाविक होता है। यदि यह विविधता हानिरहित हो, तो उस विविधता को स्वीकारने या प्रोत्साहित करने में संकोच नहीं होता। जैसे- पश्चिमी समाज में भारतीय समाज की तरह परिवार के छोटे सदस्य बड़े सदस्यों के पैर नहीं छूते बल्कि प्रायः हाथ मिलाते हैं। परन्तु, इस विविधता को स्वीकारने में कोई हानि नहीं है।
लेकिन, किसी संस्कृति के कुछ रिवाज़ और मूल्य-प्रणाली किसी दूसरी संस्कृति के लिये हानिकारक भी हो सकते हैं। जैसे- नाजी समुदाय द्वारा यहूदी समुदाय को मार डालने की अपनी प्रवृत्ति को सामाजिक स्वीकार्यता एवं कानून के समर्थन द्वारा उचित ठहराया गया। जबकि नैतिकता के धरातल पर यह अनैतिक कृत्य है। वैसे भी, किसी विशिष्ट संस्कृति के भीतर विभिन्नताओं को सुलझाने का कोई भी मार्ग आसान नहीं होता। इस दृष्टिकोण से सांस्कृतिक सापेक्षतावाद दोषपूर्ण बन जाता है।