नैतिकता से संबंधित तीन सिद्धांतों- उपयोगितावाद, परोपकारिता और अहंवाद में उदाहरण सहित अंतर स्पष्ट करें।
07 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउपयोगितावादः यह सिद्धांत ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ की बात करता है। इस सिद्धांत अनुसार यदि किसी कार्य के होने से उससे प्रभावित लोगों में से अधिकतम लोग प्रसन्नता महसूस कर रहे हैं, तो वह कार्य नैतिक तौर पर उचित है। उदाहरण के तौर पर यदि सरकार एक जल-परियोजना के तहत ‘बांध’ का निर्माण करना चाहती है, जिससे उस राज्य के कुछ गाँव तो पानी में डूब जाएंगे परंतु राज्य के अधिकतर क्षेत्रों को सिंचाई के लिये जल व उपयोग हेतु विद्युत उपलब्ध हो सकेगी, तब उपयोगितावाद अनुसार सरकार द्वारा बांध का निर्माण करना नैतिक तौर पर उचित है, चाहे कुछ गाँव पानी में डूब जाएँ। बेंथम और मिल इस सिद्धांत के समर्थक हैं।
परोपकारिताः परोपकारिता या परहितवाद वह सिद्धांत है जिसके अनुसार व्यक्ति को सदैव दूसरों के हितों को अपने स्वयं के हितों से ऊपर रखना चाहिये। परोपकारिता को अक्सर नैतिकता के केंद्रस्थ माना जाता है। इसमें व्यक्ति अपनी खुशी को दूसरों की खुशियों में खोजता है और दूसरों के हित में सदैव समर्पित रहता है। उदाहरण के लिये तेलंगाना राज्य के खम्मम जिले के एक छोटे से गाँव के दरिपल्ली रमैया वर्षों से अपनी जेब में बीज और साइकिल पर पौधे रखकर जिले का लंबा सफर तय करते हैं और जहाँ कहीं भी खाली भूमि दिखती है, वहीं पौधे लगा देते हैं। उन्होंने हजारों पेड़ों से अपने इलाके को हरा-भरा कर दिया है। वे ऐसा पूरे समाज व भविष्य की पीढ़ियों के लिये निःस्वार्थ भाव से कर रहे हैं। एक बार एक व्यक्ति ने रमैया को उसके काम से खुश होकर उनके बेटे की शादी पर 5000 रुपए दिये, परंतु रमैया ने उन पैसों को भी वृक्षारोपण के कार्य को आगे बढ़ाने में लगा दिया।
अहंवादः अहंवाद या आत्म-केंद्रण ऐसी अभिरूचि है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति अपने कल्याण को विशेष दर्जा देता है। अहंवादी का मूल उद्देश्य स्वयं के लिये आनन्द की प्राप्ति होती है। स्वार्थवाद और अहंवाद में मुख्य अंतर यही है कि जहाँ स्वार्थवादी अपने अलावा अपने संबंधितों के ‘स्वार्थों’ की प्राप्ति के लिये भी कार्य कर सकता है, वहीं अहंवादी केवल स्वयं के स्वार्थपूर्ति तक सीमित रहता है। उदाहरण के तौर पर उद्योगपति विजय माल्या आम जनता की बैंकों में जमा पूंजी को बैंकों से उधार लेकर, गबन कर ‘राजा जैसी जीन्दगी’ जी रहा है और उसे अपने कृत्य का बिलकुल भी अफ़सोस नहीं है।
उपयोगितावादियों का मानना है कि सभी मानव बिलकुल ही स्वार्थी, अहंवादी नहीं होते और न ही दूसरों के आनंद/सुख के प्रति पूर्णतः उदासीन होते हैं क्योंकि सहानुभूतियाँ और सामाजिक अनुभूतियाँ मानव चरित्र में समाहित रहती है और मानव को अहंवाद से बाहर निकालने में सहायक होती हैं।