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प्रश्न :
वर्तमान में समाज के विभिन्न हित समूहों द्वारा किये जा रहे कथित ‘सत्याग्रह’ और गांधी जी के ‘सत्याग्रह’ में विभेद स्पष्ट करें।
14 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
सत्याग्रह का शाब्दिक अर्थ होता है- सत्य के लिये आग्रह अर्थात् सत्य को पकड़े रहना। गांधी जी का सत्याग्रह सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित था। उनके अनुसार एक सत्याग्रही सदैव सच्चा, अहिंसक व निडर रहता है। उसमें बुराई के विरूद्ध संघर्ष करते समय सभी प्रकार की यातनाओं को सहने की शक्ति होनी चाहिये। ये यातनायें सत्य के प्रति उसकी आसक्ति का ही एक हिस्सा होती हैं। एक सच्चा सत्याग्रही बुराई के विरूद्ध संघर्ष करते हुए भी बुराई फैलाने वाले से घृणा नहीं करता बल्कि अनुराग रखता है। वह कभी भी बुराई के सामने नहीं झुकता, चाहे परिणाम जो भी हो। गांधी जी अनुसार केवल बहादुर और दृढ़-निश्चयी व्यक्ति ही सच्चा सत्याग्रही बन सकता है। कायर व्यक्ति हिंसा का सहारा लेता है जिसका सत्याग्रह में कोई स्थान नहीं है।
वर्तमान में हम समाज के विभिन्न हित समूहों को अपनी मांगों के लिये आंदोलन करते देखते हैं। वे अपने आंदोलन की शुरूआत भी गांधी को याद करते हैं तथा आंदोलन का प्रचार भी ‘अपने अधिकारों हेतु सत्याग्रह’ के तौर पर करते हैं।
परंतु, कुछ समय बाद ही उनके आंदोलन हिंसक हो उठते हैं। आम जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देना, सरकारी संपत्तियों को नष्ट करना, रेल की पटरियाँ उखाड़ना, बसे, ट्रक, पुलिस वाहन आदि को आग लगा देना तथा सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी करना उनके आंदोलन का हिस्सा बन जाता है। जब सरकार बल-प्रयोग कर कानून और व्यवस्था कायम करने की कोशिश करती है, तो आंदोलकर्त्ता ज्यादा हिंसक हो जाते हैं।
निःसंदेह सत्याग्रह का यह तरीका गांधी जी के सत्याग्रह की मूल भावना के सर्वथा विपरीत है। गांधी जी ‘सविनय’ अवज्ञा की बात करते हैं और वह भी पूर्णतः अहिंसक तरीके से। यदि ‘सत्याग्रही’ हिंसा का सहारा लेगा तो उसमें और ‘विद्रोही’ में अंतर ही कहाँ रह जाएगा। दूसरा, लोकतंत्र में संवैधानिक तरीके से अपने अधिकारों व जायज मांगों को मनवाया जाता है; हिंसक आंदोलनों द्वारा दबाव बनाकर सरकारों से अपनी मांगे मनवाने का तरीका भविष्य में लोकतंत्र के लिये ही संकट उत्पन्न कर देगा।
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