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प्रश्न :
‘नैतिक दुविधा’ से आपका क्या तात्पर्य है? नैतिक दुविधा की स्थिति उत्पन्न होने पर आपका नैतिक तौर पर मजबूत निर्णय किन आधारों पर अवलम्बित होगा?
20 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
‘नैतिक दुविधा’ ऐसी परिस्थिति होती है जिसमें निर्णयन में दो या अधिक नैतिक सिद्धांतों में टकराव होता है। इन परिस्थितियों में निर्णयकर्त्ता अपने आप को एक ‘दुविधा’ में पाता है क्योंकि उसे दो नैतिक मानदण्डों में से एक को चुनना होता है, जबकि दोनों बराबर की स्थिति के हैं तथा किसी भी एक को चुन लेने से पूर्ण संतुष्टि मिलना संभव नहीं होता।
जैसेः आप एक भ्रष्ट कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करें कि नहीं, क्योंकि वह गरीब है तथा पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठाने वाला अकेला सदस्य है; उस पर कार्रवाई से उसके परिवार पर बुरा असर पड़ेगा।
नैतिक तौर पर मजबूत निर्णय प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित स्रोतों को आधार बनाना चाहियेः
(i) प्रथम आधार ‘कानून’ को बनाना चाहिये। प्रस्तुत स्थिति में कानूनी तौर पर क्या उचित है?
(ii) दार्शनिक सिद्धांतों व सांस्कृतिक परम्पराओं के आलोक में परिस्थिति को देखा जाना चाहिये।
(iii) पूर्व में ऐसे स्थिति उत्पन्न होने पर वरिष्ठों या विशेषज्ञों ने क्या किया और क्या सलाह दी, उस पर अमल करना चाहिये।
(iv) अंततः स्वयं के विवेक का प्रयोग। जब कोई स्रोत भी निर्णय लेने में सहायक न हो तब स्वयं से पूछना- ‘इस नैतिक दुविधा को सही ढंग से सुलझाने के लिये मुझे क्या करना चाहिये।’इस प्रकार, हमें विभिन्न स्रोतों से निर्णय लेने में सहायता मिल जाती है और हमारा निर्णय अपेक्षाकृत नैतिक तौर पर अधिक मजबूत हो जाता है।
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