वतर्मान में शासन-व्यवस्था में प्रायः नैतिक मूल्यों का अभाव देखा जाता है। आपके विचार से शासन-व्यवस्था में नैतिक-मूल्यों का सुदृढ़ीकरण कैसे संभव है?
उत्तर :
वर्तमान में शासन-व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार, लोक-सेवकों की वंचितों के प्रति संवेदनहीनता, अकर्मण्यता तथा नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएँ इस क्षेत्र में नैतिक-मूल्यों के अभाव की ओर संकेत करती हैं। जबकि यह तथ्य है कि एक नैतिक शासन-व्यवस्था (Ethical governance) ही अच्छी शासन-व्यवस्था (Good governance) साबित होती है। अतः यह आवश्यक है कि ऐसे प्रयास या प्रतिमान सुनिश्चित किये जायें जिससे शासन-व्यवस्था में नैतिक मूल्यों की सुदृढ़ स्थापना हो सके। यथा-
- निर्वाचन या चयन की प्रक्रिया के दौरान उचित एवं नैतिक चुनाव पद्धतियों, गतिविधियों को बढ़ावा।
- विधि के शासन अथवा संविधान की मूल भावना के अनुसार कार्य करना।
- अधिकारियों की चयन परीक्षा में उम्मीदवार के मनोवैज्ञानिक परीक्षण पर विशेष बल दिया जाना।
- ऐसे अनिवार्य प्रशिक्षण का प्रावधान हो जिसमें संविधान के मूल आधार, प्रतिनिधियों के अधिकार तथा कर्त्तव्य और देशभर में शासन एवं प्रशासन का पूरा ढाँचा और उसमें उनकी भूमिका के पहलुओं की जानकारी हो।
- नैतिक संहिता तथा आचरण संहिता की स्पष्ट जानकारी प्रदान करना।
- प्रशिक्षण के दौरान सिविल सवकों के लिये ग्रामीण समाज और सामाजिक समस्याओं का सीधा अनुभव देने के लिये क्षेत्र प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- वंचित वर्गों के प्रति सहानुभूति विकसित करने के लिये विशेष प्रशिक्षण।
- कार्य संस्कृति के स्तर पर नैतिक मूल्यों को महत्त्व प्रदान करना।
- सक्रिय सिविल सोसाइटी शासकीय अधिकारियों की निगरानी कर सकती है। यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों तो भ्रष्टाचार के अवसर स्वाभाविक रूप से कम हो
इन प्रयासों से निश्चित तौर पर शासन-व्यवस्था में नैतिक मूल्यों के समावेश की संभावना बढ़ेगी, लोक सेवकों में संवेदनशीलता का विकास होगा तथा एक नैतिक, व्यवस्थित व जन-कल्याणकारी शासन-व्यवस्था की स्थापना होगी।