परिवार की ऐसी दो स्थितियों की संक्षेप में चर्चा कीजिये, जहाँ भावनात्मक प्रज्ञता (Emotional Intelligence) सहायक हो सकती है।
22 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नअपनी तथा दूसरों की भावनाओं को समझने तथा उनका समुचित प्रबंधन करने की क्षमता को भावनात्मक बुद्धिमत्ता कहते हैं। सेलोवी और मेयर अनुसार ‘यह वह योग्यता है, जिससे भावनाओं को व्यक्त किया जा सकता है, उन्हें चिंतन प्रक्रिया से जोड़ा जा सकता है, भावनाओं को समझा व नियमित किया जा सकता है ताकि व्यक्ति की वैयक्तिक प्रगति सुनिश्चित हो सके।’
सभी लोगों के पारिवारिक जीवन में प्रायः ऐसी स्थितियाँ उभरती रहती हैं, जहाँ ‘भावनात्मक प्र्रज्ञता’ स्थिति की उलझनों को सुलझाने में बहुत मददगार साबित होती है। ऐसी दो स्थितियाँ निम्न प्रकार की हो सकती हैं-
(i) आपकी 15 वर्ष की बेटी की किताब में आपको एक लड़के का प्रेम-पत्र मिलता है। आप जब अपनी बेटी से इसके विषय में पूछते हैं तो वह स्वीकार कर लेती है कि वह किसी लड़के से प्यार करती है और यह पत्र उस लड़के का है। वह अपना एक फैसला भी सुना देती है कि वह उस लड़के से जल्द ही शादी करने वाली है। इससे पूरे परिवार में अतिशय तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यहाँ आपको ‘भावनात्मक प्रज्ञता’ से सहायता मिलती है। आप अपनी बेटी पर गुस्सा हुए बिना धैर्य से पहले उसकी बातें सुनते हैं; उसको विश्वास में लेते हैं कि आप उसके निर्णय के विरूद्ध नहीं है। इससे वह आपकी बात भी सुनने के लिये तैयार हो जाएगी। फिर, आप उसे पहले उसकी पढ़ाई पूरी करने पर ही अपनी स्वीकृति देने की शर्त रखें, नाबालिक होने के कारण कानून द्वारा विवाह की मनाही होने की सूचना व सजा का डर दिखाने तथा पारिवारिक स्तर पर उस लड़के के परिजनों से स्वयं बात करने का प्रलोभन देकर उस स्थिति को संभाल सकते हैं।
(ii) आप और आपकी पत्नी दोनों नौकरी करते हैं। आपकी पत्नी पर ऑफिस जाने से पहले और आने के बाद पूरे परिवार के लिये खाना बनाने की भी जिम्मेदारी है। आपकी पत्नी का कहना है कि वह अत्यधिक थकान के कारण ऐसा नहीं कर पाती हैं, इसीलिये एक रसोइया रख लेना चाहिये। तब इस बात पर आपके माता-पिता एतराज जताते हैं कि रसोइये का बनाया खाना हम नहीं खाएंगे, हमें तो बहु के हाथ का बनाया ही खाना है। ऐसी स्थिति में भावनात्मक बुद्धिमत्ता निम्न प्रकार से मदद कर सकती है-
माता-पिता को विनम्रतापूर्वक समझाना कि आप स्वयं भी ऑफिस से आते हुए अत्यधिक थकान महसूस करते हैं, तो आपकी पत्नी को भी थकान होती ही होगी। अतः उसका रसोइया रखने के लिये कहना अतार्किक नहीं है। फिर, पत्नी को समझाना कि माता-पिता की सेवा व आज्ञा का पालन करना हमारा कर्त्तव्य व उत्तरदायित्व है, अतः उनकी पसंद-नापसंद पर तीव्र प्रतिक्रिया नहीं देनी चाहिये अपितु उनकी बात को उनके दृष्टिकोण से समझना चाहिये। तत्पश्चात् एक रसोइये को खाना बनाने के लिये रखा जाये, जो माता-पिता को छोड़ कर अन्य सभी परिवार के सदस्यों का खाना बनाये व माता-पिता का खाना बनाने में आपकी पत्नी की मदद करे।
इस प्रकार भावनात्मक प्रज्ञता से पारिवारिक रिश्तों की नाजुक डोर को सहजता से संभाल कर मजबूत किया जा सकता है।