अभिवृत्ति के निर्माण में सामाजिक अधिगम (Social Learning) की भूमिका को उदाहरणों के साथ स्पष्ट करें।
28 Jun, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नव्यक्ति में किसी मनोवैज्ञानिक विषय (व्यक्ति, वस्तु, समूह, विचार, स्थिति आदि) के प्रति सकारात्मक, नकारात्मक अथवा तटस्थ भाव को, व्यक्ति की उस विषय के प्रति ‘अभिवृत्ति’ कहा जाता है। व्यक्ति की अभिवृत्ति सापेक्षतः स्थायी होती है तथा इसमें प्रेरित करने की क्षमता होती है। अभिवृत्तियाँ सामान्यतः व्यक्तिगत अनुभव एवं समाज के साथ अन्तर्क्रिया द्वारा सीखी जाती हैं; ये अपवाद स्वरूप ही जन्मजात हो सकती है।
अभिवृत्तियों के निर्माण में सामाजिक अधिगम की अहम भूमिका होती है। सामाजिक अधिगम के तीन तरीकों द्वारा अभिवृत्तियों के निर्माण की प्रक्रिया को समझा जा सकता है-
(i) शास्त्रीय अनुकूलन (Classical Conditioning): यह मनोविज्ञान का एक प्रसिद्ध सिद्धांत है, जिसके अनुसार जब दो उद्दीपक एक निश्चित क्रम में लगभग साथ-साथ किसी के सामने आते हैं तो कुछ समय के बाद पहला उद्दीपक दूसरे उद्दीपक का संकेत बन जाता है और उसके प्रति व्यक्ति वही प्रतिक्रिया करने लगता है जो उसे दूसरे उद्दीपक के प्रति करनी थी।
उदारहण के तौर पर यदि कोई व्यक्ति किसी भी बुजुर्ग को देखकर उसका अभिवादन करता है और उसके साथ उसका बच्चा भी उसका अनुसरण करता है तथा यह प्रक्रिया कई बार दोहराई जाती है तब कुछ समय पश्चात् बच्चा दूसरे उद्दीपक (व्यक्ति द्वारा बुजुर्ग का अभिवादन) की आवश्यकता महसूस करना बंद कर देगा तथा पहले उद्दीपक (बुजुर्ग) को देखते ही अभिवादन करना शुरू करने लगेगा जो वस्तुतः वह दूसरे उद्दीपक के अनुकरण में करता था।
(ii) साधनात्मक अनुकूलन (Instrumental Conditioning): इसका अर्थ है कि व्यक्ति को जैसा व्यवहार करने पर प्रशंसा या पुरस्कार मिलता है, वह धीरे-धीरे उसी के पक्ष में अनुकूल अभिवृत्ति विकसित कर लेता है। इसके विपरीत जिस व्यवहार के कारण उसकी आलोचना होती है, वह उसे करने से बचता है और उसके प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति विकसित कर लेता है।
(iii) प्रेक्षणात्मक अधिगम (Observational Learning): इसमें व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के व्यवहारों को देखकर अपनी अभिवृत्तियाँ निर्मित करता है। उदाहरण के तौर पर यदि शिक्षक बच्चों को कोई शिक्षा दे लेकिन स्वयं उसका पालन न करे तो बच्चे शिक्षक के आचरण का अनुकरण करते हैं, न कि उसके कथनों का। जैसेः यदि कोई अध्यापक बच्चों को मदिरा और धूम्रपान से दूर रहने की शिक्षा देता है किन्तु स्वयं मदिरा भी पीता है और धूम्रपान भी करता है तो वह अपने विद्यार्थियों को चाहे कितना ही इस संबंध में ज्ञान क्यों न दे, वे मदिरा व धूम्रपान से परहेज नहीं करेंगे।