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प्रश्न :
‘मूल्यों के विकास में जितनी भूमिका परिवार की होती है, उतनी समाज की भी होती हैं।’ इस कथन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
01 Jul, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
‘मूल्य’ वे नैतिक आदर्श होते हैं जिनकी उपलब्धि अथवा जिनके विकास के लिये नैतिक नियम बनाये जाते हैं जैसे- शांति, न्याय, सहिष्णुता, आनंद, ईमानदारी, समयबद्धता आदि प्रसिद्ध मूल्य हैं। मूल्यों के संबंध में समाज की समझ होती है कि वे सामाजिक जीवन को संभव व श्रेष्ठ बनाने के लिये आवश्यक हैं। इन मूल्यों को साकार करने के लिये सामाजिक मानक, रीति-रिवाज, परम्पराएँ, प्रथाएँ इत्यादि निर्मित होती हैं, जैसे- बड़ों का आदर करना एक मूल्य हैं, जिसकी अभिव्यक्ति के लिये बड़ों का आदर करना एक मूल्य हैं, जिसकी अभिव्यक्ति कि लिये बड़ों के पैर छूना या अभिवादन करना आदि सामाजिक नियम बनाये गये हैं।
मूल्यों के विकास में परिवार वह पहली सीढ़ी हैं जिस पर चढ़कर मानवीयता के लक्ष्य को पाना आसान होता है। 6 वर्ष तक की आयु जीवन का एक ऐसा पायदान है जब बच्चा दूसरों के आचारण से सबसे अधिक प्रभावित होता है, इसलिये प्राथमिक स्तर पर मूल्य इसी उम्र में निर्धारित होते हैं। हालांकि बाद में भी मूल्य विकसित होते हैं लेकिन प्रभाव का स्तर धीरे-धीरे कम होता है। प्रशिक्षण, प्रोत्साहन, निन्दा, दण्ड आदि कुछ ऐसे उपकरण हैं जिनसे परिवार द्वारा बच्चे में ये मूल्य विकसित किये जा सकते हैं। परिवार एकल हैं या संयुक्त, परिवार की आर्थिक स्थिति, शैक्षणिक स्तर तथा सत्ता की संरचना बच्चे में मूल्यों की पृष्ठभूमि तय करने में सहायक होती है। यथा- एकल परिवार में ‘वैयक्तिक’ होने का मूल्य और संयुक्त परिवार में साथ रहने का मूल्य प्राप्त होने की संभावना रहती है।
समाज भी परिवार के साथ-साथ मूल्यों के विकास में भागीदार होता है। समाज की असल भूमिका वैसे तो विद्यालय जाने के साथ शुरू होती है परन्तु इससे पूर्व भी उसका योगदान रहता है। किशोरावस्था एक ऐसा पड़ाव है जब समाज का दबाव सर्वाधिक होता है। बच्चे का समाज से ज्यों-ज्यों संपर्क बढ़ता है मूल्यों का विकास भी उत्तरोतर बढ़ता जाता है। मीडिया, खुद पर्यवेक्षी हो जाना, सामाजिक समूहों से वार्त्तालाप, सह-शिक्षा विद्यालय आदि से समाज के नैतिक मानदण्ड, सामाजिक गतिशीलता, रूढ़ि, परिवर्तन जैसे विचारों को प्रभाव पड़ता है। विभिन्न धर्मों, जातियों और क्षेत्रों के लोगों के साथ मिलकर/रहकर धैर्य, सहिष्णुता जैसे मूल्यों को विकसित करने में सहायता मिलती है। मूल्यों के विकास में सामाजिक प्रभाव समाज के साथ अंतर्क्रिया की मात्रा पर भी निर्भर करता है। जो जितना सामाजिक होगा, उस पर समाज का उतना ही प्रभाव होगा।
इस प्रकार हम पाते हैं कि मूल्यों के विकास में परिवार और समाज दोनों का अहम योगदान है। जहाँ आरम्भिक अवस्था में परिवार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वहीं उम्र बढ़ने के साथ-साथ व सामाजिक अन्तर्क्रिया बढ़ने पर समाज की भूमिका अधिक बढ़ जाती है। इन दोनों पहलूओं के अतिरिक्त मूल्यों के विकास में शिक्षण संस्थानों की भी बड़ी भूमिका होती है। उच्चशिक्षा के स्तर पर तो व्यक्ति में ‘व्यक्तित्व परिवर्तन’ की संभावना भी बढ़ जाती है।
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